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मुमुक्षु शांता जैन
कौन-सा रंग हमारे व्यक्तित्व पर कैसा प्रभाव डालता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि रंग किस प्रकार का है । भावों को समझने के लिये भगवान् महावीर ने लेश्या को शुभअशुभ, रूक्ष-स्निग्ध, ठण्डा-गर्म, प्रशस्त-अप्रशस्त बतलाया है। आज के रंग विज्ञान में भी लेश्या का संवादी सूत्र उपलब्ध होता है । रंग के दो प्रकार बतलाए हैं-चमकदार-धुंधले, अन्धकारमय-प्रकाशमय, गर्म-ठण्डे । लेश्या की प्रकृति व्यक्तित्व की व्याख्या करती है। कृष्ण, नील व कापोत वर्ण यदि प्रशस्त है, चमकदार है तो वे शुभ माने जाएंगे और पीला, लाल और सफेद रंग यदि अप्रशस्त, धुंधले होंगे तो वे अशुभ माने जाएंगे । शुभता और अशुभता रंगों की चमक पर निर्भर है।
नमस्कार मंत्र के जप के साथ जिन रंगों की कल्पना की जाती है उनसे भी यही तथ्य सामने आता है । जैसेणमो अरिहन्ताणं
श्वेत रंग, णमो सिद्धाणं
लाल, णमो आयरियाणं
पीला, णमो उवज्झायाणं
हरा, णमो लोए सव्व साहूणं
काला।२ लेश्या के सन्दर्भ में कृष्ण लेश्या को सर्वाधिक निकृष्ट माना गया है पर मुनि धर्म के साथ जुड़ा कृष्ण वर्ण प्रशरत रंग का वाचक है । वैदिक साधना पद्धति से ब्रह्मा की उपासना लाल रंग से की जाती है क्योंकि लाल रंग निर्माता का रंग है। विष्णु की उपासना काले रंग से की जाती है क्योंकि काला रंग संरक्षण का माना गया है। महेश की श्वेत रंग से क्योंकि श्वेत रंग संहार करने वाला है। इसीलिये ध्यान करते समय रंग-श्वास में चमकदार रंगों का श्वास लेने और उनसे अपने आपको भावित करने की बात कही जाती है ।
जैन आगमों में लेश्या शुद्धि के लिये कई साधन बतलाए हैं। उनमें ध्यान विशेष उल्लेखनीय है। प्रेक्षाध्यान पद्धति में भाव परिवर्तन के लिये, चेतना के जागरण के लिये रंगों का ध्यान महत्त्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि रंग का हमारे पूरे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति इस आधुनिक ध्यान पद्धतियों में एक है। उसमें युवाचार्य महाप्रज्ञ ने लेश्याध्यान को एक महत्त्वपूर्ण अंग माना है।
ध्यान में साधक चैतन्य केन्द्रों पर चित्त को एकाग्र कर वहाँ निश्चित रंगों का ध्यान करता है । ध्यान की पृष्ठभूमि में वह कायोत्सर्ग, अन्तर्यात्रा, दीर्घश्वास, शरीर-प्रेक्षा, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा आदि को भी अच्छी तरह से साध लेता है।
चैतन्य केन्द्र हमारी चेतना और शक्ति की अभिव्यक्ति के स्रोत हैं। ये जब तक नहीं जागते, तब तक कृष्ण, नील, कापोत तीन प्रशस्त लेश्याएं काम करती रहती हैं। व्यक्तित्व
१. नवकारसारस्तवन, गाथा,७ २. लेश्या ध्यान-युवाचार्य महाप्रज्ञ पृ० ५३
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