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कवि हरिराजकृत प्राकृत मलयसुंदरीचरियं प्रारम्भिक अंश :॥ श्री वीतरागाय नमः ।।
पणय-पयकमल सुरयण-किंनर-नरविंद नह खयर'....। ... ... ... .''पडिय, णमो णमो तुज्झ जिणइसा ॥१॥ धवलं वरसोयरे वीणाकर जासु पुत्थिया हत्थे । गायंती महुरं.. ... ... ... ... ... 'सरसइ मज्झु ॥ २॥ वीरस्स पढमगणहरु पयडो दायार-लद्धि सिद्धीए। सो गोयम् समरंतो अप्पउ कल्याणं सुहकव्वे ॥३॥ वुहिपणयण-पयकमलं पणमउ हरसेण पुव्वसुरीणं । मुढइह इय सव्वं पसाउ जिणभत्ति कयसत्ति ॥४॥ पाइय वंधे कव्वे पुव्वकयं सोइऊण अमीयं सगं ।। तो मह परिसइच्छाउ पत्तिअ कव्व-आरंभे ॥५॥ धम्म अपकित्ति-हरणं धम्म उक्किट्ठ-मंगलं भणियं ।। संसार-सारधम्म, धम्म धुअ-सिवपहे सत्थं ॥ ६ ॥ चउविहधम्माभणिउ जिणदेवेहिं चउम्महे पयडो । दाणवहोरो तह सीलं तव भावेण नामए अमलं ॥ ७ ॥ नाणं दंसण-चरण रयणत्तयं जीववोहयं हवइ। तह कहियं पि हु सम्मं नाणपहाणं विक्खइहिं ॥८॥ लोयण तइयं नाणं नाणं दीवंत मोह-रसयलं । नाणं तिहुयणसूरं नाणं अप्पाणं मल-दहणं ॥९॥ नाणं धरइ सम्म जीवं पडियं महापया मज्झे । जह सई य मलयसुंदरि वोहए गोसिलो गव्वे ॥१०॥ अत्थि इह भरहवासे पसिद्ध चंदावाइ पुरी नामे । कणय-मणि-मंदिरेहिं पायारगं तुंग-सिहरेहिं ॥ ११ ॥ दयासहिओ जहि लोए महाजणो वसइ जत्थ वरसिद्धा। इंदपुरी सारिच्छा मढजिणवरविहं अच्छरियं ॥ १२॥ सिरिवीरधवल नामे अत्थि निवो तत्थ केसरी सरिसो।
मायंग अरि-नरिंदाण जेण कुंभत्थलं दलिअं॥ १३ ॥ अंतिम अंश :
जह सीलु धवलु पाविउ मलया सई पतिसंकडे पडिओ। तिम हो भव्वयणं तुम्हं रक्खंतह सुह फलं होइ ॥ ७९३ ॥ तह तवि महावलेणं सहिओ उवसग्ग-पामियओ मुक्खो। तिम जे निचल ठाणं लहंति ते भविय संसिद्धि ॥ ७९४ ॥
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