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पउमचरियं के हिन्दी अनुवाद में कतिपय त्रुटियाँ
(पूर्वार्धमात्र)
विश्वनाथ पाठक प्राध्यापक श्री शान्तिलाल म० वोरा ने प्राचीन जैन रामायण पउमचरियं का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर साहित्य की श्लाघ्य सेवा की है। प्राकृत ग्रन्थ परिषद् से मूल प्राकृत-पाठ के साथ प्रकाशित उक्त अनवाद में अनेक स्थलों पर कछ त्रटियाँ रह गई हैं। अतः उन त्रटियों का मार्जन आवश्यक है। प्रस्तुत निबन्ध में त्रुटिग्रस्त स्थलों के विवेचन के साथ-साथ संगत अर्थ-संघटन का भी प्रयास किया गया है। आशा है सुधीजन मेरे सुझावों का समुचित मूल्यांकन करेंगे।
सर्वप्रथम हम राक्षसवंशाधिकार शीर्षक प्रकरण की निम्नलिखित गाथा पर विचार करते हैं
आवत्तवियडमेहा उक्कडफुडदुग्गहा महाभागा।
तवणायवलियरयणा कया य रविरक्खससुएहिं ॥ ५॥२४८ उक्त संस्करण में इसका अनुवाद इस प्रकार दिया गया है-"आवर्त विकट नामक मेघ से युक्त विस्तीर्ण विशद एवं शत्रुओं के द्वारा दुर्ग्रह तथा किनारों से टकराने वाली पानी की लहरों में बह कर आये रत्नों से व्याप्त द्वीपों में रविराक्षस के पुत्रों ने भी सन्निवेश बसाये।" इस अनुवाद को तारकांकित कर नीचे यह पादटिप्पणी दी गई है-"मूल में 'तवणायवलियरयणा' पाठ है । इस पद का अर्थ बहुत खींच-तान करने पर भी बराबर नहीं बैठता । रविषेण ने मूल में जो भी पाठ रहा हो उसका अनुवाद 'तटतोयावलीरत्न द्वीपाः' किया है और वह सन्दर्भ के अनुरूप भी प्रतीत होता है । अतः उसी का अनुवाद यहाँ दिया गया है।' इस टिप्पणी के अनुसार अनुवादक ने मूलपाठ को ही उपेक्षित कर दिया है । उन्होंने केवल रविषेण के अनुवाद का अनुवाद देकर संन्तोष कर लिया है। अतः इस गाथा के खोये हुए वास्तविक अर्थ पर सम्यक विचार आवश्यक है।
हिन्दी अनुवादक ने आवत्तवियडमेहा' का अर्थ 'आवर्तविकट नामक मेघ से युक्त' किया है। अब प्रश्न यह है कि यदि 'आवत्तवियडमेह' का अर्थ 'आवर्त विकट नामक मेघ' है तो अनुवादक को उसी पर रुक जाना चाहिये था। 'आवर्तविकट नामक मेघ से युक्त' यह अर्थ कहाँ से आ गया। देवदत्त कहने पर देवदत्त से युक्त अर्थ व्यवहार में कहीं नहीं आता है। साथ ही साथ यदि 'आवर्त विकट' संज्ञा या विशेष्य है तब तो प्रस्तुत पद्य में सन्दर्भ लभ्य सन्निवेश पद का अभाव होने के कारण अन्य पद उसी के विशेषण हो जायेंगे। अतः उक्त अर्थ अविश्वसनीय है।
___ 'आवत्तवियडमेहा' का सीधा सा अर्थ इस प्रकार है-'आसमन्ताद् वृत्ता उत्पन्नाः विकटाः सुन्दराः मेघाः घनाः येषु' अर्थात् जिनमें चारों ओर सुन्दर मेघ उत्पन्न होते रहते थे या
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