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शतपदी प्रश्नोत्तर पद्धति में प्रतिपादित जैनाचार साधु को चैत्यवन्दन तीन श्लोकवाली स्तुति से ही करना चाहिए। क्योंकि साधु मलमलीन एवं अस्नात होते हैं अतः अल्प स्तुति करके उसे तुरन्त चैत्य से निकल जाना चाहिए। साधु को चैत्यवन्दन में कृत्रिम स्तुतियाँ अर्थात् आधुनिक साधुओं के द्वारा बनाई गई स्तुतियाँ नहीं बोलनी चाहिए।
दो से कम साधुओं को एवं तीन से कम साध्वियों को नहीं विचरना चाहिए।
चातुर्मास के पश्चात् शेष काल में भी साधु साध्वी पीढ़, फलक आदि का उपयोग कर सकते हैं।
साधु को अपने उपाश्रयों में गीत, नृत्य, वाद्यवादन आदि नहीं करवाना चाहिए। साधु तथा साध्वी को द्वार युक्त वस्ति में ही रहना चाहिए।
कुछ आचार्य दीक्षा लेने के बाद साध्वी का प्रथम लोच स्वयं अपने हाथों से करते थे। शतपदीकार ने कहा- साध्वी का लोच साध्वी को ही करना चाहिए साधुओं को नहीं; जो ऐसा करते हैं वे शास्त्र विरुद्ध करते हैं ।
साधु को हाथ-पैर आदि नहीं धोने चाहिए क्योंकि शास्त्र में साधु को हाथ पैर धोना मना है।
भिक्षा लाने के समय में ही साधु को आहार करना चाहिए। अन्य समय में नहीं । शतपदीकार ने साधुओं के आचार में निम्न अपवाद भी सूचित किये हैं।
१. साधु पुस्तक, लेखनी, स्याही तथा उनकी सुरक्षा के उपकरण रख सकते हैं। २. पात्र में लगाने के लिए यदि खंजण लेप नहीं मिलता है तो अन्य लेप भी लगा
सकते हैं। ३. साधु कारणवश स्थिर (भीत, स्तंभ) अथवा चल (पीठ, फलक) का आधार लेकर ___ बैठ सकता है। ४. यदि साधु को ऋषभकल्पनावाली वसति नहीं मिलती है तो वह अन्य वसति में भी
रह सकता हैं। ५. बाहर वर्षा वरस रही हो तो भी साधु उपाश्रय में आहार कर सकता है। ६. सूत्रार्थ पौरुषी में भी साधु धर्मदेशना दे सकता है। ७. कारणवश साधु सूत्रपौरुषी में अर्थ और अर्थपौरुषी में सूत्र पढ़ सकता है। ८. साधू मात्रक, वासत्राण घड़ा, सुई, कैंची, कर्णशोधिका, पादलेखनिका आदि आवश्यक
उपकरण अपने पास रख सकता है। ९. कारणवश साधु मासकल्प को कम या अधिक कर सकता है। १०. नीव्रोदक से भी साधु वस्त्र आदि धो सकता है । ( नीव्रोदक छत से गिरा हुआ वर्षा
का पानी।) ११. कारणवश साधु अपने निवास का द्वार बन्द कर सकता है और खोल भी सकता है। १२. कारणवश साधु पासत्थे ( शिथिलाचारी) को वन्दन कर सकता है, उनसे बातचीत
कर सकता है और उनकी वसति में निवास भी कर सकता है।
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