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________________ श्री. अगरचंद नाहटा नं०४४ शांतिसूरि का सं. १२२४ स्वर्गवास लिखा है पर क्षेमसेखर शिष्य उदयशेखरकृत जयतारण विमल जिन स्तवन ( गा. ११) में, इन्हो ने सं. १२३६ माघ सुदि १३ को राजसी के भराई हुई इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा ( शांतिसूरिजी ने ) कराइ थी ऐसा उल्लेख है, यथासंभव शांतिसूरि उपरोक्त ही होगें । नं०४९ अभयदेवसूरि का सं. १३२१ में स्वर्ग लिखा है पर — जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह ' ___ लेखांक ८९९ में इनका (प्रतिष्ठा ) सं. १३८३ मा. सु. ११ का लेख उपलब्ध है। नं०५१ शांतिसूरि का सं. १४४८ में स्वर्गवास लिखा है पर पट्टावली समुच्चय पृ. २०५ में सं. १४५८* का इनका लेख है । नं०५२ यशोदेवसूरि का स्वर्गवास सं. १४८८ लिखा है पर सं. १५०१-७-११ तक के आप की प्रतिष्ठित मूर्तियों के लेख उपरोक्त दोनों ग्रन्थों में पाये जाते हैं। पल्लीवाल गच्छ-साहित्य (१) (४८) महेश्वरसूरिकृत “कालिकाचार्य कथा" (सं. १३६५ भा. लि. प्रति) P.R. III नं. ४४ (२) (५०) आमदेवसूरिकृत “ प्रभावक चरित्र " ( गद्य ) ( उल्लेख सं. १६१७ के मतपत्रमें देखें " युग. जिनचन्द सूरि ' ग्रन्थ के पृ. ४२ में ) (३) (५१) शांतिसूरिः-विरचित “ विधिकरणशतक " ( उल्लेख जयसोमोपाध्यायकृत २६ प्रश्नोत्तर ग्रन्थ में ) (४) (५३) नन्नसूरिः---कृत श्रीमंधरजिनस्तवन गा. ३५ ( सं. १५४४ ) (पत्र २ भाषा. ले. १६ वीं शताब्दि, महरचंद भं. बं. नं. ३ बीका०) (५) (५५) महेश्वरसूरि-- कृत (A) " विचारसार प्रकरण" प्राकृत गाथा ८८ ( टबार्थ * हमारे संग्रह में भी सं. १४५६ का लेख है जिनकी नकल पीछे देखें । x “ महेश्वरसूरि" नाम से और भी कई आचार्य हो गये हैं और उनके रचित " पंचमी कहा " " संयममंजरी " आदि कई ग्रन्थ उपलब्ध भी है पर उन ग्रन्थों के कर्ता इसी गच्छ के थे या अन्य परम्परा के यह निर्णय नहीं हो सकने के कारण उन ग्रन्थों का यहां उल्लेख नहीं किया गया । (५५) सं० १५९१ महेश्वर सूरि के राज्य में लिखित २ प्रति ये देखी गई है जिन की पुष्पिका लेख इस प्रकार है: (A) सं० १५९१ वर्षे कार्तिक शुदि १० शुक्रवारे श्री वर्द्धमानपहीवालगच्छे भट्टारिक श्री ५ महेश्वरसूरि विजयराज्ये वा. श्री रत्नचंद्र वा. खिमाणंदा ततशिष्य । वा. बा. लाभचंद्र लिखितं ॥ ग्र० ७२५ । पीछेकी:-पूज्य प्रभु भट्टारक श्री श्री श्री ९ अजित शताब्दि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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