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पल्लीवाल गच्छ पट्टावली
पार्श्वनाथजी के परम्परा के पट्टधर आचार्यों के नाम और विशेष परिचय " पट्टावली समुच्चय " में प्रकाशित ' उपकेश गच्छ पट्टावली' और 'जैन जाति महोदय " नामक ग्रन्थ से जानना चाहिये ।
अब महावीर परम्परा पर संक्षिप्त विचार किया जाता है ।
एक उपकेश गच्छ को छोड़कर अवशेष सारे गच्छवालों ने अपनी परम्परा भगवान महावीर से मिलान की है लेकिन पहले के जमाने में लिखने की अपेक्षा स्मृति के आधार पर अधिक कार्य चलता था । इस से भिन्न २ पट्टावलीयों में जिसे जो जो स्मरण था लिखते गये । अतएव अनेक पाठान्तर और वैषम्य बढ़ते ही चले तो भी वेताम्बर समाज के पट्टधर आचार्यों की परम्परा वीर निर्वाण से लगभग १००० वर्ष तक की व्यवस्थित रूप से उपलब्ध+ है उसके बाद अनेक कारणों से पट्टधर आचार्यों का इतिहास व्यवस्थित न रह सका । जिसके फलस्वरूप प्रायः सभी गच्छवालों की पट्टावलीयो में मध्यकालीन आचार्यों के जन्म, दीक्षा, पदप्रतिष्ठा, स्वर्गवास संवत नहीं पाये जाते । इतना ही नहीं उस समय के इतिहास पर
ष्ट डालने से यह भी ज्ञात होता है कि कई असंभव और असम्बंधित बातों का भी पट्टावलीयों मे संमिश्रण हो चुका है । लेकिन इन सब पर विचार करने का न तो इस लेख का उद्देश्य ही है, न उतनी साधन सामग्री उपलब्ध और अवकाश है । अतः प्रस्तुत पट्टावली सम्बन्धी ही कई आवश्यक बातें लिख देता हूं ।
१ इस पट्टावली में प्रथम पट्टधर आचार्य का नाम सुधर्मा का है तब अन्य कइ पट्टावलीयों में गौतमस्वामी का नाम प्रथम नम्बर में है ।
यद्यपि भगवान महावीर के निर्वाण समय से गौतमस्वामी के निर्वाण में १२ वर्ष का अन्तर है तथापि महावीर निर्वाण के रात्रिको ही उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया था, अतः गच्छ व्यवस्था सारी सुधर्मास्वामी करते थे इससे उनका नाम कइ पट्टावलीयों में नहीं रखा गया और उनका १२ वर्ष का समय भी सुधर्मास्वामी के युगप्रधानत्व काल में मिला दिया गया है ।
२ स्थूलभद्रजी के पाट पर कइ पट्टावलीयों में आर्य महागिरिजी का नाम है लेकिन इस पट्टावली में उन का नाम न हो कर स्थूलिभद्रजी के बाद उनके शिष्य आर्य सुहस्ती सूरिजी का नाम दिया गया है।
+ देवार्द्धगणि क्षमाश्रमण तक की आचार्य और युगप्रधान परम्परा जो कि कल्पसूत्र और नंदीसूत्र में पाइ जाती हैं । देखें पट्टावली समुच्चय ।
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[ श्री आत्मारामजी
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