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[ श्री देवकुमार जैन 'भारतीय' अध्यापकश्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल, गुजरांवाला. ] ( १ )
शरण दो महावीर भगवान ।
इस दुःख - माया - जाल-भ्रमण में भूल रहा मतिमान | ज्ञान - नेत्र प्रभु ! अंध हुए हैं, होवे मम शुभ ज्ञान || शरण दो० ||
( २ )
भव - समुद्र लघु नाव है मेरी, मैं नहिं साहसवान ।
पार उतारो करुणासागर, करो दया का दान || शरण दो० ॥
( ३ )
कर्मों से मैं बहुत दुःखी हूँ, हुआ निपट अज्ञान ।
कर्म करें शुभ मति प्रभु ! उपजे, होऊं सद्गुण- खान । शरण दी.
( ४ )
"
पर - कल्याण किया नहीं मैं ने कर सेवा निज धर्म जाति की,
दिया नहीं सद्ज्ञान ।
करुं देश - उत्थान || शरण
( ५ )
गौतमस्वामि से विरोधी हैं, पाते केवलज्ञान |
मम अवलम्बन प्रभो ! तुम्हीं हो, कीजे दिव्य महान || शरण दो० ॥
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( ६ )
धन यश की प्रभु चाह न मुझ को, गाऊं तव गुणगान । " भारतीय " सेवक उद्धारक, वेग करो कल्यान ॥
शरण दो महावीर भगवान ॥
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