________________
पंजाब के जैन भंडारों का महत्त्व
1. किया था जिस की रिपोर्टें लाहौर से सन् १८८०-८२ में प्रकाशित हुई। इन की बनाई हुई गुजरांवाला के श्री जिनमन्दिर के भंडार की सूची पंजाब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में विद्यमान है । इस में ६७९ जैन तथा १०० के लगभग जैनेतर ग्रन्थों का वर्णन है । यह भंडार ला ० कर्मचंद भाबडा की देखरेख में था ।
इनके अतिरिक्त योरप तथा भारत के प्राचीन पुस्तक संग्रहों की और बहुत-सी सूचियां हैं जिन में सैंकडों जैन ग्रन्थों का उल्लेख है । इन के देखने से भली प्रकार विदित होता है कि वर्तमान जैन साहित्य सर्वाङ्गसंपूर्ण है । जैन विद्वानों ने सभी विषयों में अपना पाण्डित्य दिखाया है । जो साधु तथा यति स्वयं ग्रन्थरचना कर सकते थे वे अपना समय ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने में बिताते थे ।
अब पंजाब के भण्डारों के महत्त्व का दिग्दर्शन कराया जाता है ।
वैसे तो जिस वस्तु का संबन्ध किसी पूज्य व्यक्ति से रहा हो, भक्तों में उसका महत्व होता ही है । इस दृष्टि से पंजाब के जैन भंडारों का महत्त्व जैनियों के अंदर, विशेष कर पंजाबी जैनियों के अंदर होना ही चाहिये; परंतु जैन साहित्य तथा इतिहास संबन्धी अनुसंधान के लिये तो इन का बड़ा भारी महत्त्व है । इस कथन की पुष्टि में एक २ दो २ उदाहरण दिये जाते हैं । विशेष वर्णन भंडारों की निरीक्षण रिपोर्ट में होगा जो उनके निरीक्षण समाप्त हो जाने पर प्रकाशित की जायगी ।
1
( १ ) पूर्णता - लेखक का अनुमान है कि पंजाब के श्वेताम्बर और स्थानकवासी भंडारो में छोटी बड़ी सब मिलाकर अनुमान २०,००० हस्तलिखित प्रतियां हैं । इस संख्या को देखकर दृढ़तापूर्वक कहा जा सकता है कि इन में श्वेताम्बर संप्रदाय का समग्र साहित्य विद्यमान होना चाहिये; क्यों कि जैन ग्रन्थावली ( जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स, मुंबई, वि० सं० १९६५ ) में, जो गवर्नमिंटद्वारा प्रकाशित सूचियों पर से तथा स्वतन्त्र रीति से तय्यार हुई थी, अनुमान ३६०० संस्कृत प्राकृत के श्वेताम्बर ग्रन्थों का उल्लेख है । श्रीयुत मोहनलाल दलीचंद देशाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ( अमदावाद, वि० सं० १९८९) में अनुमान १८०० संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों तथा ६०० गुजराती ग्रन्थों का उल्लेख है । डा० बिटर्निट्झ के हिस्ट्री ऑफ इंडियन लिट्रेचर ( वाल्युम २, बौद्ध और
४ टीपो करवा माटे विद्वान पंडितोने रोकी ते कार्यने माटे मोकलवामां आव्या. [ जैन ग्रन्थावली, प्रस्तावना पृ. ६ ] .
• १६० :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
[ श्री आत्मारामजी
www.jainelibrary.org