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एक जैन वीर
तीसरा -- हुजूर भले हमारी बात न मानें मगर मैं दावे से कह सकता हूँ कि अ हुजूर उसको अभी बुलावेंगे तो भी वह न आयगा ।
चौथा -- वह कहता है कि दरबार में जाऊँगा तो अपनी इच्छा से; किसी के बुलाने से नहीं ।
राजा नाराज़ हो कर बोले: “ मैं इसी वक्त जोरावरसिंह को बुलाने भेजता हूँ । अगर वह आ गया तो तुम को हाथी के पैरों तले कुचलवा दूंगा । '
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वे लोग तो यह चाहते ही थे । वे जानते थे कि जोरावरसिंह अभी सामायिक करने बैठा होगा । आना तो क्या वह जवाब भी न देगा । वे खुश थे कि आज हमारी इच्छा पूरी होगी। मगर खुशी के भाव को दबाकर बोले: “हुजूर हमें जो दंड देंगे वह स्वीकार होगा; परंतु अगर वह न आवे तो उसके लिए भी यही सजा मुकर्रिर होनी चाहिए ।
राजा ने कहाः " ठीक हे ।
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फिर जोरावरसिंह को बुलाने के लिए हलकारा भेजा गया। घर के लोगों ने कहा किः " अभी वे भगवान का भजन कर रहे हैं । न आ सकेंगे । "
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हलकारा बोला: "मुझे बताओ वे कहाँ हैं। मैं उनको हुजूर का हुक्म सुनाकर जाऊँगा ।" हलकारा जोरावरसिंह जहाँ सामायिक कर रहे थे पहुँचाया गया । उसने कहा: चलिए, हुजूर ने इसी वक्त आप को याद फर्माया है ।
"
मगर जोरावरसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया । देता कहाँ से ? उसने तो उस समय सामायिक व्रत अंगीकार कर, सभी सावद्य योगों का त्याग कर आत्मचिंतन में मन लगाया था । वह उस समय नवकारवाली हाथ में लेकर भवसागर से तारनेवाले महान मंत्र नवकार का जाप कर रहा था ।
कुछ क्षण ठहरकर हलकारे ने फिर सवाल किया: " कहिए, मैं हुजूर से जाकर क्या अर्ज करूँ
"
फिर भी जवाब न मिला । हलकारे ने जवाब न मिलने को अपना अपमान समझा । वह दरबार में लौटा और उसने नमक मिरच लगाकर बातें सुनाईं ।
दुष्ट दरबारी बोले : "हुजूर हम तो पहले ही जानते थे । " राजा को बड़ा क्रोध आया । उसने हुक्म दिया: " पचीस सिपाही जावें और जैसे वह बैठा हो वैसे ही उसे उठा लावें । "
[ श्री आत्मारामजी
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