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गणारयाविषिरात
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रचना संवत् १३७१ अपभ्रंश ( प्राचीन हिन्दी-गूजराती ) भाषा संशोधकः-मोहनलाल द. देशाई 2. A. LL. B. ADVOCATE. संपादक.
श्री जिनाय नमः ॥ अथ श्रावकविधि रास ॥ पाय पउम पणमेवि, चउवीसवि तित्थंकरह; श्रावकविधि संखेवि, भणइ गुणाकरसूरि गुरो जिहिं जिणमंदिर सार, अनइ तपोधन पामिय ए: श्रावक जन सुविचार, वणुं तृणुं इंधन जलप्रधलो न्यायवंतु जहिं राउ, जण धग धन्न रमाउ लउए; सूधी परि ववसाउ सूधइ थान कि तिहिं वसउ ए धम्मिहिं हुइ परलोइ, घर कम्मिहिं इह लोय पुण; तिहिं नर आह न ओह, जिहिं सूता रवि ऊगमई ए ॥४ ॥ तउ धम्मेवि ऊठेवि, निसि चउघडियइ पाछिली ए; जिण नवकार पढेवि, पहिलउं मंगल मंगलांह तक्खणि मेल्हवि पाट, कवण देव अम्ह कवण गुरो; अम्ह कवण कुलवाट, कवण धम्म इम चिंतवई ए कइ धरि कइ पोसाल, लेइ सामायक पडिक्कमउ ए, पच्चखाण प्रह कालि, जं सक्कइ तं पचखउ ए
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शताब्दि ग्रंथ 1
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