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नगायें घशाकाहार IMCODADRASI
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'क्यो न मम आंसू बहें ?' रचयिता-न्यायतीर्थ विद्याभूषण पं. ईश्वरलाल जैन विशारद हिंदीरत्न
धर्माध्यापक-श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल (पंजाब) गुजरांवाला । विश्व की समर-स्थली पर गुरुदेव यदि आते नहीं। जग में अहिंसा धर्म को इस रूप में पाते नहीं ॥ याद कर उपकार उनके दास बन जाते नहीं। नहीं झूठ यह पंजाब में मन्दिर नज़र आते नहीं ॥१॥ दहला दिया उन वादियों को मान में जो चूर थे । सूर्यज्ञान दिखा दिया अज्ञान में जो पूर थे। रिपु बन के आते क्रोध में जो शांत होते सुन कथा । गुरुदेव थे सच्चे प्रचारक कथनवत् आचरण था ॥२॥ विषयादि सुख सब छोड़कर के वीर वैरागी बने । जग में “ अहिंसा धर्म " फैलाने के बस रागी बने । अमेरिका की धर्म परिषद् में दुहाई मच गई। वीर गांधी ने चला दी धर्म की नैय्या नई ॥ ३ ॥ आलोक फैला ज्ञान का तम दूर भग जाता रहा । गुरुदेव जहँ जाते रहे वह संघ सुख पाता रहा ॥ गम गलत था सब संघ का जब धर्मनाद बजा दिया । रागद्वेष को छोड़ कर के मार्ग सत्य बता दिया ॥ ४ ॥ मंदिर बने जो हर जगह उस वीर का उपकार है। मंदिर नहीं जिस जाति के जाति वही निस्सार है । साहित्य से ही जातियों का मान बढ़ता है सदा । इस हेतु ग्रंथागार रच डाला गुरु ने इक महा ॥ ५ ॥ विजयानन्द से इल्म का रस विश्वजन को मिल गया । क्रोध पापाचार का दल संघ से फिर हिल गया ॥ क्यों कर न गायें यश उसीका क्यों न मम आंसू बहे ? जोड़कर दो हाथ क्यों न 'लाल' सब के सर झुकें ॥ ६ ॥
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