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श्रीयुत उदयशंकर भट्ट
जिनकी कृपासे शेर बकरी शत्रुता सब त्याग कर । आनन्द में फूले फिरे निज श्वास में अनुराग भर ।। जिनकी कृपा कण से अहिंसा मंत्र वसुधा में भरा । आनन्द से पुलकित हुई निश्वास नव लेकर धरा ॥ ५ ॥ आज व्याकुल है जगत, बेचैन है, सुखशान्ति दर । आज पारस्परिक कलहों से हुआ यह विश्व क्रूर ॥ प्रभु, अहिंसा, शुभ दया, सद्ज्ञान फैले देश में । हो न हिंसा का कहीं कुछ लेश ऊन सन्देश में ॥ ६॥ है यही निश्चय, प्रभु पथ आप का कल्याणकर । शान्ति पायेगा जगत् पथ है यही जन त्राण कर ॥ विश्व का, कैवल्य उनके खेल बांये हाथ का । हो कृपा कण एक पल यदि विश्वगुरु जिननाथ का ॥ ७ ॥ विभव के धन, सुधा के धन, स्वर्ग साधन को प्रणाम । गृही के जप, साधु के तप, सुख विटप-'जिन' को प्रणाम । आधि व्याधि उपाधि के सब दोष हर शंकर प्रणाम । बुद्धि के बल, शुद्ध केवल, भक्त के मलहर प्रणाम ॥ ८॥
शताब्दि ग्रंथ
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