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श्री. शशिभूषण शास्त्री
आप को सत्य के लिये गहरा प्रेम था । सच्चाई प्रगट करने में आप अपनी कोई हीनता न समझते थे । एक बार एक आदमी ने प्रश्न किया कि क्या आप साधु धर्मानुसार ४२ दोषों झट उत्तर दिया कि इस युग में यह कार्य अति कठिन कि यथाशक्ति इस का ध्यान रक्खें ।
से रहित आहारपानी लेते हैं ? आप ने है तथापि हम साधुओं का कर्तव्य है
आचार्यदेव ! तुम्हारी सत्यप्रियता की गुणावली का कहां जीवन की प्रत्येक घटना ही इस का प्रमाण है । निःसंदेह आप हुए सत्यसिन्धु के समुज्ज्वल मोती थे । जो भी आप की संगत में गुण से मंत्रमुग्ध - सा हो गया ।
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वाचकवृन्द ! आइये, अन्त में हम सब मिल कर सत्यप्रेमी, युगप्रर्वतक आचार्यमहाराज की जीवनी का यह एक गुण ही इस शुभ अवसर पर स्मरण कर अपने जीवन में परिणत करें तथा भूले भटके जीवों को सत्य मार्ग दिखानेवाले आचार्यदेव के भी चरणकमलों में अपनी श्रद्धांजलि भेटकर अपने मस्तकों को झुका दें
शताब्दि मंथ ]
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तक गान करें ! आप के.
सत्य - सागर के उछलते आया वही आप के इस
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