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________________ श्री. जसवंतराय जैनी वैदिकशास्त्रों पर दृष्टि देवे तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि वैदिक बातें कही वा लीइ गई सो सब जैनशास्त्रों से नमूना इकठी करी है”। संपूर्ण पत्र और ५१ अर्थवाला श्री आत्मारामजी महाराज की स्तुतिरूप मालाबंध काव्य तत्त्वनिर्णयप्रासाद ग्रंथ के पृष्ठ ५२६-५२८ पर छपा है । इतना ही नहीं, एक युरोपियन विद्वान डॉकटर ए. एफ. रुडोल्फ हार्नल साहब ने भी, जो संस्कृत प्राकृत के सुप्रसिद्ध पंडित थे, श्री आत्मारामजी महाराज की स्तुति संस्कृत श्लोकों में की है, उनमें से केवल एक श्लोक यहां उद्धत करते हैं दुराग्रहध्वान्तविभेदमानो !, हितोपदेशामृतसिंधुचित्त !। सन्देहसन्दोहनिरासकारिन् !, जिनोक्तधर्मस्य धुरंधरोऽसि ॥ और देखिये-आज से अनुमान ४० वर्ष से भी पहिले चिकागो (अमेरिका) में संसार के सर्व धर्मों का सम्मेलन हुवा था, जिस के संबंध में The world's Parliament of religions ( दी वर्लडस पार्लिमेंट ऑफ रिलिजन्स ) नाम की किताब छपी थी, उस के पृष्ठ २१ पर श्री आत्मारामजी महाराज की मूर्ति छपी है, उसके नीचे लिखा है किः "No man has so peculiarly identified himself with the interests of the Jain community as Muni Atmaranji. He is one of the noble band sworn froin the day of initiation to the end of life to work day and night for the high muission they have undertaken. He is the highest priest of the Jain community and is recognised as the highest living authority on Jain religion and literature by Oriental scholars." ज्यों ज्यों हिंदी-ग्रंथों का प्रचार और उपयोग बढ़ता गया, त्यों त्यों श्री आत्मारामजी महाराज में भी अन्यान्य ग्रंथों के रचने का उत्साह अधिकतर होता गया । आप ऐतिहासिक योग्यतासम्पन्न थे। आप औत्पातिक्यादि बुद्धि के भी धनी थे । आप ने श्री ऋषभदेव भगवान से लेकर अपने और अपने शिष्य-प्रशिष्यों तक २४ तीर्थंकरों, ऋषि, मुनि, आचार्यों की वंशावलि वृक्षाकार तैयार की, जिस २ समय में जो २ धर्म, संप्रदाय और गच्छादि होते रहे, सब का संक्षिप्त वर्णन इस में लिखा है । नाम है जैन-मत-वृक्ष-शाखा, प्रशाखा, फल, फूल, पत्रादि में ऐतिहासिक विषय हीरे मोतीयों की तरह ऐसी चतुराई से जड़े हैं कि उसकी सज धज को देखकर किसी से भी विना प्रशंसा किये नहीं रहा जाता। यह एक दर्शनीय वस्तु है। : श्री आत्मारामजी महाराज की अनुपम बुद्धि और विद्याबल का प्रताप था कि आप प्रत्येक विषय में सकल कलाकुशल थे। इतिहास में निपुण, खंडनमंडन में चुस्त, अनेक धतादि ग्रंथ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012050
Book TitleAtmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherAtmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
Publication Year1936
Total Pages1042
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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