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________________ किया है कि समसामयिक मान्यताओंकी दृष्टिसे जैन परमाणुवाद आधुनिक दृष्टिसे भी अधिक समीचीन प्रमाणित होता है। सूक्ष्म और व्यावहारिक-दोनों ही प्रकारके परमाणु (चाहे ऊर्जा रूप हों या सूक्ष्मकण रूपमें हों) आगमोंमें पौद्गलिक बताये गये हैं। अतः उनमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और संस्थान-ये पाँच गुण होते है । आगमोंमें परमाणुओंका विभाजन इसी आधार पर किया गया है और उनकी संख्या २०० ही मानी गई है । वस्तुतः रूप-रसादिके आधारपर परमाणुओंका यह वर्गीकरण उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि यद्यपि रूप, रस आदि मुख्यतः २० प्रकारके होते हैं, पर उनके अवान्तर भेद इतने अधिक है कि इस आधार पर वर्गीकरणकी कोई विशेष महत्ता नहीं रह जाती और परमाणुओंको अनन्त प्रकारका कहनेके अतिरिक्त अन्य विकल्प नहीं है । वस्तुतः परमाणुओंका वर्गीकरण उनकी आन्तरिक संचरनाके आधारपर ही करना चाहिये । यह दृष्टि यन्त्रयुगीन सूक्ष्मतर निरीक्षण क्षमताको प्रकट करती है। यदि हम व्यवहार परमाणुकी धारणाको संबल देते हैं, तो यह कहा जा सकता है कि ये सूक्ष्म परमाणुओंसे निर्मित होते हैं । पर ये स्कन्ध नहीं कहलायेंगे क्योंकि ये परमाणु विस्तारकी सीमामें ही रहते हैं। इन सूक्ष्म परमाणुओंको मूलभूत कणों या ऊर्जाके रूपमें माना जा सकता है। पर इन कणों आवेश, द्रव्यमान आदिके कारण भिन्नताएँ हैं। इनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। यह उल्लेख सही नहीं लगता कि सभी परमाणुओंका द्रव्यमान बराबर होता है । द्रव्यमान-विहीन चतुस्पर्शी सूक्ष्म परमाणुओं की प्रकृतिकी व्याख्या अभी पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। इस प्रकार आगमोक्त परमाणुवादको निम्न प्रकार निरूपित किया जा सकता है : सूक्ष्म परमाणु -→ व्यवहार परमाणु -→ स्कन्ध -→ महास्कन्ध इन तथ्यों पर तुलनात्मक समीक्षकोंको विचार करना चाहिये । शास्त्रोंमें परमाणु-सम्बन्धी वैचारिक चर्चा जितनी ही सूक्ष्मतासे वर्णित है, स्कन्ध-विषयक चर्चा उतनी ही स्थूलतासे वर्णित है । सामान्यतः स्कन्धोंको सभी समीक्षक आधुनिक अणुके समकक्ष मानते हैं । इनके दो रूप स्पष्ट है-चाक्षुष और अचाक्षुण । इनके निर्माणको प्रक्रियासे सम्बन्धित आगम सूत्रोंकी व्याख्यामें कुछ अन्तर पाया जाता है और श्वेताम्बर-परम्पराकी व्याख्या आधुनिक दृष्टिसे अधिक वैज्ञानिक प्रतीत होती है। जैनने बताया है कि उमास्वातिके परमाणुबन्ध-सम्बन्धी तीन सूत्र समुचित अर्थ करने पर आधुनिक तीन प्रकारकी बन्धकताको निरूपित करते है यदि आगमोक्त परमाणुओंको वैज्ञानिक परमाणुओंके समकक्ष या व्यवहार परमाणु माना जाय । NaCl व H, के अणुओंके निर्माण क्रमशः स्निग्धरुक्षत्वात् बंधः तथा गुणसाम्ये सदृशानांको निरूपित करते हैं । SO2 या HNO, के अणुओंके निर्माण व्यधिकादि गुणानां तुके उदाहरण है। जैनने सूक्ष्म परमाणुओंके बन्धकी जटिलताको प्रतिपादित करते हुए उमास्वातिके बंध निर्देशक सूत्रोंके अर्थमें भ्रान्ति ही उत्पन्न की है । वस्तुतः सूक्ष्म परमाणुओं (इलेक्ट्रान-इलेक्ट्रान, प्रोजिट्रान-पोजिट्रान या इलेक्ट्रान-पोजिट्रान आदि) के बंधोंको असामान्य कोटिका माना जाता है जिनमें सामान्य बन्धोंकी अपेक्षा पर्याप्त ऊर्जाका विनिमय होता है। इन सूत्रोंको केवल व्यवहार परमाणुओंके बन्धोंका निरूपक माना जाना चाहिये। फिर भी यह तथ्य मनोरञ्जक है कि बन्धकी विभिन्न विधियोंके निरूपणमें शास्त्रोंमें स्कन्धों के कोई भी उदाहरण नहीं दिये गए हैं। लेकिन यह माना जा सकता है कि चूंकि परमाणुके बन्धमें चार धातुएँ या चतुर्भूज स्कन्ध (पृथ्वी, जल, तेज, और वायु) बनते हैं, अतः उन्हें ही इनका स्थूल उदाहरण - ४६१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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