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जड़ी हुई है। अवकाश प्राप्त करनेके बाद भी उनकी कर्मठता, उनकी स्वाध्यायकी प्रवृत्ति में तनिक भी न्यूनता नहीं दिखाई पड़ती।
___ मैंने उन्हें दूरसे भी देखा, समीपसे भी। दूरसे उनकी ज्ञानवृद्धतासे प्रभावित हुआ, तो समीपसे उनकी आत्मीयता, सहजता एवं वात्यल्यभावसे स्नात होकर अपनेको धन्य समझता रहा हूँ।
शत शत वन्दन, कोटि कोटि अभिनन्दन
___ बाबूलाल शास्त्री 'फणीश', ऊन (पावागिर) इस बीसवीं सदीके मूर्धन्य जैन विद्वानोंमें परम श्रद्धय पं० कैलाशचन्द्र जी सिद्धान्ताचार्यका नाम श्रेष्ठतम है। भारतका समस्त जैन समाज ही नही, किन्तु सारा राष्ट्र आपसे भली भांति सुपरिचित है । इस उद्भट विद्वान्ने भागीरथीके पावन तट पर स्याद्वाद महाविद्यालय रूपी वटवृक्षको सम्पूर्ण रूपसे सिंचित किया, उसे संजोया, अगणित फलोंसे । आपने निर्धन-धनिक बालकोंको सम्यग्ज्ञानकी ज्योतिसे, धर्मामत पान कराया जो आज भी नक्षत्रोंकी भाँति चमकते हए समाज व राष्ट्रकी सेवा करते हैं। इसलिये आप सहस्रों विद्यार्थियोंके जनक तुल्य हैं । सफल लेखक, प्रबल प्रवक्ता, समाजोद्धारक, निष्पही, निर्लोभ मूक सेवकके रूपमें आपने समाज व देशको गौरवान्वित किया। मैं पण्डितजीको शत शत वन्दन एवं कोटि कोटि अभिनन्दन करता हूँ।
हिमिगिरि से पावन गंगा ने, अविरल स्रोत बहाया । इसी भाँति श्रीकैलाशचन्द्र ने, ज्ञानामृत पान कराया ॥ जब तक पावन गंगा जल है, तब तक जीवन पाओ। जब तक नभ में रवि-शशि चमके, अपना यश चमकाओ॥
स्याद्वाद शिरोमणि
पं० यतीन्द्र कुमार शास्त्री, लखनादौन, म०प्र० चलना ही जीवन है। चाहे व्यक्ति हो, समाज हो, राष्ट्र हो या धर्म हो। जो गतिवान है, वही जीवित है । यदि सफलतापूर्वक मंजिल तय करना है, तो विश्वास, प्रेम तथा विवेकको साथ लेकर बढ़ते चलो । अगर कोई कठिनाइयाँ आयें, तो उनसे हँसते हुये जूझो। जीवन सदैव समताभावी हो, तो कुछ काम करो । निष्काम भावनासे करो। मानव सिद्धिके पहले प्रसिद्धिकी कामना करता है । यही उसकी भूल है।
प्रतिज्ञा जीवन विकासका अनिवार्य अंग है। किन्तु वह तभी तक है जब तक उसे पूरी तरह निभाया जाये। तभी गन्तव्य पर पहुँचा जा सकता है। जीवनका व्यवहार आदान-प्रदान पर चलता है । प्रदानके बिना आदान शोषण है । आदान कम, प्रदान ज्यादा, यही जीवनकी महानता है। जीवन संगीतके दो स्वर हैं-एक सख्त और एक कोमल । जो इनका समयानुकूल प्रयोग जानता है, वही धर्म या समाजकी सच्ची सेवा कर सकता है। ये उद्गार पूज्य महापुरुषोंके हैं जो उन्होंने समय पर प्रगट किये हैं तथा दृढ़ता पूर्वक अपने जीवन में उतारे हैं। किसी भी तरहके स्वार्थ और प्रलोभनसे रहित कर्तव्यकी प्रेरणासे सेवा कार्य करना ही पण्डितजीके जीवनका उद्देश्य रहा है। सत्यकी अभिव्यक्ति हो जाने पर उसे नगाड़ेकी
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