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________________ वाले दाहिने हाथमें श्वेत पुण्डरीक (१६ दलका), बाएँ हाथमें ताडपत्रीय पुस्तक है जो काष्ठ फलक तीन फीटोंमें बन्धी हुयी है। इस हाथकी अन्तिम अंगुलि खण्डित है। दाहिना हाथ, जो वरद मुद्रामें है उसमें खण्डित अक्षमाला धारण कर रखी है। बाएँ हाथमें पुष्पपंक्तियोंसे सुसज्जित कमण्डलु है । उसकी नलकीका अग्रमात्र टूट गया है। साँचेमें ढला देवी का शरीर त्रिभंग मुद्रामें सोने में सुहागेका कार्य कर रहा है। पद्मासनके पद्मके दोनों ओरसे नाल निकले हुये हैं। इस आसन पर वाहन हंस चित्रित है। इसके गले में पड़ी त्रिवलीने अंग सौष्ठवको बढ़ाया है, लम्बी आँखोंमें भाव प्रवणताके कारण वे अर्द्ध मुकुलित हैं । लम्बे गोल हाथकी अगुलियाँ लम्बी कलात्मक हैं। बड़े नाखूनोंसे अंगुलियाँ और भी सुन्दर हो गया है। चेहरे पर सौम्यता एवं नवयौवनकी आभा फूटी पड़ती है । हथेलियों पर पुष्प-तथा सामुद्रिक रेखाएँ अंकित हैं । सरस्वतीकी जैन प्रतिमाएँ आभूषण-सज्जा एवं सुन्दर वस्त्र सज्जाके कारण प्रसिद्ध हैं। यह मूर्ति इसका अद्वितीय उदाहरण है । इसके शीश पर रत्न जटित मुकुट सुशोभित है। इस मुकुटसे निकल कर बाल बड़े कलात्मक ढंगसे जूड़ेके रूपमें बायीं ओर लटक रहे हैं। गलेमें हारोंकी पंक्तियाँ हैं जिनमें फलक हार भी हैं । गोलहाथोंमें आभूषण भुजबन्धसे शुरु होकर कंगन, चूड़ियाँ, अगुलियोंमें अंगुलियाँ तक पहने हुए हैं। आभूषण ठोस और कलात्मक हैं । मुखाकृतिके अनुसार कानोंमें लटकते मोतियोंके झुमके अत्यन्त सुन्दर लग रहे हैं । कानके ऊपरी भागमें मणियुक्त भँवरियाँ धारण किये हुये हैं। ऊपरका नग्न शरीर साँचेमें ढल कर बना मालूम पड़ता है। नीचेके भागमें फलदार किनारेकी कस कर सुन्दर साड़ी बँधी है। यह फलदार साड़ी सुन्दर वनमालाके नीचेसे स्पष्ट होती है। ऊपर कमर सुन्दर कटिसूत्र है। जिसकी सुन्दर दनी पैरों पर लटक रही हैं। लम्बी सुन्दर अंगुलियों युक्त पैरोंमें पादजालक पहने हुए हैं। साडीका कपड़ा अत्यन्त पारदर्शक और असाधारण मालूम पड़ता है । अन्य यक्षिणियाँ (अर्ध देवियाँ) : १. चक्रेश्वरी और उसकी प्रतिमाएँ ___ बी० सी० महाचार्यने अपनी पुस्तक दी जैन इक्नोग्राफीमें हेमचन्द्रका एक उदाहरण देते हुए चक्रेश्वरीका रूप वर्णन किया है । इसका विवरण वासुनन्दीकृत प्रतिष्ठासारसंग्रहमें उपलब्ध होता है : वामे चक्रेश्वरी देवी, स्थाप्या द्वादश-षड्भुजा । धत्ते हस्तद्वये बजे चक्राणि च तथाष्टसु ।। एकेन वीणपुरं तु वरदा कमलासना। चतुर्भूजाऽथवा चक्रं द्वयोर्गरुडवाहना ॥ जैनोंकी यह यक्षिणी ब्रह्मदेवी भी है। गन्धावलमें प्राप्त ऋषभनाथकी शासनदेवी चक्रेश्वरी अद्वितीय है। यह जैन प्रतिमाओंमें विशेष स्थान रखती हैं। इसके बीस हाथोंमें से अधिकतर हाथ खण्डित हैं। बचे हुओंमें आयुध और दोमें चक्रपूर्ण रूपसे स्पष्ट है। इनके पकड़ने का ढंग ध्यान देने योग्य है । यह आभूषणमण्डिता है। राजस्थानमें औशिया ग्राममें ( भुजाएँ हैं। यह सभीमें चक्र पकड़े हुए है। शीर्षके पीछे प्रभामण्डल है। दोनों ओर विधाधर युगल निर्मित हैं। प्रतिमाके ऊपरी भागमें ध्यनमद्रामें स्थित पाँच तीर्थंकरोंकी लघु मूर्तियाँ हैं। दाहिने पैरके पास वाहन गरुड़ विराजमान हैं और बाँये हाथमें सर्पपकड़ा हुआ है। उत्तरप्रदेमें प्रतिहार कालकी प्राप्त मूर्तिमें चक्रेश्वरी ललितासनमें विराजमान है जिसे पूर्ण विकसित कमल दलके रूपमें दिखाया गया है। इसका समय १०वीं सदी है। इसके आठ हाथोंमेंसे छः हाथोंमें चक्र है, निचला दाहिना हाथ वरद मुद्रामें है । बायेंमें फल है । शीशप्रभामें आदिनाथकी मूत्ति है । इसकी पीठिका पर वाहन गरुड़ आलीढ़ मुद्रामें अंकित है। पुरातत्त्व संग्रहालयमें ऋषभनाथकी कई मूत्तियाँ मिलती हैं। -३२४ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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