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________________ मन वच तन ते दृढ़ करि राखो, कवहं न ज्या विसरायो। वारम्वार वीनवै बुधजन, कीजे मनको भावौ ॥ तुम० ॥ ५. भानुमलका अर्चन ( पूजन) द्रव्य आठों जु लोना है अर्घ कर में नवीना है। पूजते पाप छीना है, भानुमल जोर कीना है। दीप अढ़ाई सरस राजै, क्षेत्र दश ता विष छाजै । सात शत बीस जिन राजे, पूजनां पाप सब भाजै ।। भानुमल, दैनिक पूजा-पाठ गुटका पृ० २२ अर्चनाका एक अन्य गीत भी देखिये : नाथ तोरी पूजा को फल पायो, मेरे यो निश्चय अब आयो मेंढक कमल पांखुरी, मुख में वीर जिनेश्वर धायो । श्रेणिक गज के पगतल मूवो, तूरत स्वर्गपद पायो । नाथ० ।। मैना सुन्दरी शुभमन सेती, सिद्धचक्र गुण गायो । अपने पति को कोढ़ गमायो, गंधोदक फल पाये ।। नाथ० ।। अष्टापद में भरत नरेश्वर, आदिनाथ मन लायो। अष्टद्रव्य से पूजा प्रभुजी, अवधिज्ञान दरसायो । नाथ० ।। अञ्जनसे सब पापी तारे, मेरो मन हुलसायो । महिमा मोटी नाथ तुमारी, मुक्ति पुरी सुख पायो ।। नाथ० ॥ थकीथकी हारे सुर नरपति, आगम सीख जितायो। देवेंद्रकीर्ति गुरु ज्ञान मनोहर, पूजा ज्ञान बतायो । नाथ, तोरी पूजाको फल पायो, मेरे यो निश्चय अब आयो । दैनिक पूजा-पाठ गुटका, पृ० ८४ ६. द्यानतराय का दास्य भाव तुम प्रभु, कहिगत दीन दयाल, अपन जाय मुकुति में बैठे, हम जु रुलत जग जाल । तुम प्रभु, कहियत दीन दयाल । तमरो नाम जपै हम नीके, मन बच तीनौं काल । तम तो हमको कछ देत नहि. हमरो कौन हवाल ।। भले बुरे हम दास तिहारे, जानत हो हम चाल । और कछु नहि हम चाहत हैं, राग दोषको टाल ।। तुम, प्रभु कहयित दीन दयाल ।। हम सौं चूक परी सो बकसो, तुम तो कृपा विसाल । द्यानत एक बार प्रभु जगतै, हमको लेहु निकाल । तुम प्रभु कहियत दीन दयाल । द्यानतराय, अध्यात्मपदावली, पृ० २६६ -२४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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