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________________ विद्यालयसे आप पिंड छुड़ाना चाहते थे, वही स्याद्वाद विद्यालय आपके चरणोंकी रज पाकर सुगंधमय हो गया । भारतकी सभी दिशाओं में विद्यालयकी प्रशस्ति गूँज उठी । विद्यालयमें प्रवेश करते समय आपके कुछ दिन अत्यन्त उद्विग्नतामें बीते । आपने अपने बड़े भाई साहबके सहयोगसे वहाँसे चतुराईसे भाग जानेमें ही अपना हित देखा । और यदि पण्डितजीको उस रातमें गाड़ी मिल गयी होती, तो श्री स्याद्वाद विद्यालयका वर्तमान स्वर्ण युग हमें देखने को नहीं मिलता, जैनवाङ्मयको सम्भवतः आपके मेधावी शिष्य नहीं मिलते तथा आपकी कलमका रस - माधुर्य चखनेको नहीं मिलता । रेलवेसारिणीने बड़ी कृपा की है हमारे जैनसमाजपर कि पंडितजीको रातमें गाड़ी नहीं मिली ।.... पिताजी आपकी प्रशंसा करते हुए अघाते नहीं थे जब आपका जिक्र आता, पिताजी कहते, "पं० कैलाशचन्द्रजी बहुत स्वाभिमानी व्यक्ति हैं । बहुत उदार हैं, खाने-पीने का बहुत बढ़िया शौक रखते हैं । बाल-बच्चोंके विवाह में आपका खातिर - तवाजह और सुरुचिपूर्ण मीनू देखते बनता है। शादी-विवाह में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, प्रिंसिपल जौक-दर-जौक आगे रहते | आप बहुत पापुलर हैं । मेहमानके लिए बिस्तरा रिजर्व रखते हैं । घरपर आए-गएका खाना-पीना, आदर-सत्कार बहुत चावसे करते हैं । तबीयत - में सुलझा हुआ मजाका है आप जैसे विद्वान् हमारे यहाँ कहाँ है । स्थाद्वाद विद्यालयके लिए आपने सब कुछ अर्पण कर दिया । X X आइए वाराणसी चलें । भगवान् पार्श्वनाथकी जन्मभूमि । भदैनीके लिए रिक्शा कर लेते हैं । घबड़ाइये नहीं, थोड़ी देर में भदैनी तीर्थ आ जायेगा, जहां गंगा स्याद्वाद विद्यालय एवं पं० कैलाशचन्द्रजीको प्रतिदिन प्रतिपल प्रणाम करती है । लीजिए, भदैनी आ गया । यहीं उतर जाइये । इसी गलीमें हमारे योगी तपस्वी रहते हैं । हाँ, यहीं सामने ( लाल ईंटोंवाली ) ऊँचाई पर पाँव बढ़ाइये । तपस्वी सन्त ऊँचाई पर रहकर ही तपस्या साधना करते हैं । विशाल दरवाजेसे अन्दर चलें । देखा, "आइये - आइये", मधुर कंठ और मुक्त मुस्कानसे आपका स्वागत हो रहा है। आपको अपने पास बहुत प्यारसे बैठाया गया है। जी, शिरपर गांधी टोपी, बहुत सुन्दर मुख, गौर वर्ण, स्वाध्याय और सामायिकमें डूबी हस्ती और और तेजस्वी आँखों पर चश्मा, अधरोंपर नाचती हुई मधुर मुस्कुराहट, संयमित एवं गर्भित वाणी, खादीकी वास्कट, कुर्ता, धोती और कपड़ेका जूता पहने हुए जो दिव्य पुरुष दिख रहे हैं, यही आचार्यों के आचार्य, संतोंमें संत वन्दनीय श्री कैलाशचन्द्र शास्त्री हैं । X • बहका वक्त है, आपके लिए पण्डितजी गरमागरम जलेबी लायेंगे । आपको इतने प्यारसे जलेबी खिलायेंगे कि आप बहुत भावुक हो जायेंगे । लगेगा गलेमें जलेबीका रस दुगना हो गया है। आपसे कुशलक्षेम पूछेंगे, आपके आनेके अभिप्रायको यथाशीघ्र पूरा करेंगे। अपने बारेमें अपने साहित्य सजनके बारेमें नहींके बराबर चर्चा करेंगे। बहुत जानने की कोशिश करियेगा, तो अति संक्षेपमें जानकारी देकर चुप हो जायेंगे । आपके भोजनका वक्त हो गया है, पण्डितजी आपको स्वादिष्ट भोजन चखानेके लिए, रसोइयेको आदेश देकर पुनः आपके पास बैठ गये । भोजन आपको बहुत प्रेम से करायेंगे । आपके प्रमुख शिष्य बाबू चेतनलालजीके शब्दोंमें, " पण्डितजी ऐसा सन्तोषी और गुणी व्यक्ति मिलना मुश्किल है ।" आपका आचरण मुनियों जैसा है । हमेशा नपी-तुली भाषामें अपने शब्दों को कहना और सलाह देना, आपका स्वभाव है । वे अपने शिष्यों के हित के लिए हमेशा चिन्ता करते हैं । आपके पढ़ाये हुए शिष्य, बारोजगार और १० Jain Education International - ७३ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012048
Book TitleKailashchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Jain
PublisherKailashchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Rewa MP
Publication Year1980
Total Pages630
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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