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लिये यह भी आवश्यक है कि विद्वान केवल परीक्षा पास न हो, किन्तु उसे जिनागमका रहस्य भी ज्ञात हो, भाषणकलामें भी कुशल हो और शास्त्रीय प्रश्नोंका उत्तर शास्त्राधारसे देनेकी क्षमता हो। इसके लिये उसे शास्त्राभ्यासी होना आवश्यक है।
आजकल तो छात्रोंमें शास्त्राभ्यासकी रुचि नहीं पाई जाती। कक्षामें पढ़ते समय भी वे अन्यमनस्क रहते हैं। परीक्षामें नकल करके पास होते हैं। ऐसी स्थितिमें उन्हें विषयका ज्ञान कैसे सम्भव है। और उसके अभावमें वे कैसे समाज पर अपना प्रभाव डालने में सक्षम हो सकते हैं । अतः दोनों ही ओरसे अपनीअपनी त्रुटियोंको दूर करने पर ही समस्याका हल निकल सकता है। उसके बिना परिस्थितिमें सुधार सम्भव नहीं है । आशा है समाज इधर ध्यान देगा तथा विद्वान बननेके इच्छुक भी ध्यान देंगे ।
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