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६२ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशोधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ श्रद्धय पण्डितजीका स्तुत्य अभिनन्दन .५० कमलकुमार शास्त्री, 'कुमुद', खुरई
श्रद्धेय पं. बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका सदा स्मरण किया जावेगा। उन्होंने आगमकी रक्षा की है और उसे विकृत होनेसे बचाया है । निश्चयएकान्तका जो धुआँधार प्रचार किया गया उसमें सामान्यजनोंकी बात ही क्या, अच्छे-अच्छे सिद्धान्ताचार्य विद्वान भी उसमें बह गये।
व्याकरणाचार्यजीने निमित्तको अकिं चित्कर बतानेवालोंका डटकर मकाबला किया और उसके लिए 'जैन दर्शनमें कार्य कारणभाव और कारक व्यवस्था' ग्रन्थमें सिद्ध किया कि कार्योत्पत्तिमें निमित्त उतना ही भागीदार है जितना उपादान । उपादानको निमित्त न मिले तो वह अनन्तकाल तक उपादान ही बना रहेगा, उपादेय नहीं बन पायेगा। रोटीके बनने में आटा उपादान है पर उसमें पानी, रोटी बनाने वाला, उरसा, बेलन, आग, लकड़ी आदि सहकारी कारण न मिले तो आटा त्रिकालमें रोटी नहीं बन सकेगा। भव्य जीवको देव-शास्त्र-गुरुका सान्निध्य न मिले और अन्तरंगमें दर्शनमोहनीयका उपशम-क्षय-क्षयोपशमका निमित्त न मिले तो उसे सम्यग्दर्शन अनन्तकालमें भी प्राप्त नहीं हो सकता। इस प्रकार व्याकरणाचार्यजीने निमित्तोंको कार्यकारी सिद्ध करके उपादानोपादेय भावकी तरह निमित्त-नैमित्तिक कार्यकारणभावको भी आवश्यक एवं अनिवार्य सिद्ध किया है। यही आगमकी प्ररूपणा है।
व्याकरणाचार्यजीने अपनी कृतियों द्वारा स्तुत्य प्रयास करके आगमको विकृत होनेसे बचाया है। वे समाज द्वारा अवश्य अभिनन्दनीय है । हम उनके स्वास्थ्य एवं शतायुष्यकी हार्दिक कामना करते हैं।
वेश, समाज एवं राष्ट्रको अनुपम विभूति • श्री बाबूलाल जैन फागुल्ल, वाराणसी • श्रीमती पुष्पादेवी जैन, वाराणसी
श्रद्धेय ५० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यके अगाध ज्ञानकी जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। वे आगम ग्रंथोंके महाज्ञाता और पारखी हैं । उनकी लेखनीमें बल है कि किसी भी प्रकारकी गुत्थीको इतनी सरलतासे आगम प्रमाणोंके आधार पर अकाट्य बना देते हैं और विषयका प्रतिपादन ऐसी सूक्ष्म रीतिसे करते हैं कि सामान्य पाठक भी सहजतासे हृदयंगम कर लेता है।
जयपुर खानिया तत्त्वचर्चा और उसकी समीक्षा, जैनशासनमें निश्चय और व्यवहार, जैन तत्त्वमीमांसाकी मीमांसा जैसी महान कृतियाँ हैं जिनका सभी क्षेत्रोंमें समादर हआ है और उन्हें यश भी मिला है। और उनकी ज्ञानाराधनाकी साधना सफल हई है। यही नहीं, देश और राष्ट्र की सेवामें भी वे अग्रणी रहे हैं यही कारण है कि वे धुनके पक्के, चिन्तनशील एवं विचारक है साथ ही सहृदय भी। सबको अपना बना लेनेकी उनकी कला भी अनूठी है। हम लोगों के प्रति उनका सहज स्नेह है।
ऐसे प्रतिभाशाली समाजसेवी, राष्ट्रभक्त चिन्तक मनीषीका इस अभिनंदन ग्रंथ समर्पणकी बेलामें हृदयसे मंगल कामना हैं कि वे स्वस्थ तथा दीर्घायुष्य प्राप्त कर हम सबको मार्गदर्शन देते रहें ताकि धर्म, समाज, राष्ट्रकी सेवा होती रहे। इसी भावनाके साथ मैं अपने श्रद्धा-सुमन, विनयाञ्जलि समर्पित करता हूँ।
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