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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : ५९ बहु आयामी व्यक्तित्त्व • डॉ. मोतीलाल जैन, खुरई सम्माननीय पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका व्यक्तित्त्व बहु आयामी है। स्वतन्त्र वस्त्र-व्यवसायसे लेकर राष्ट्रके स्वतन्त्रता-आन्दोलन तकमें उन्होंने असाधारण योगदान किया है। उनका वस्त्र-व्यवसाय इतना नैतिक है कि वे आज पूरे प्रदेशमें बड़े आदर और श्रद्धाके साथ देखे जाते हैं। एक तो उनका कोई प्रतिद्वन्दी नहीं है और कोई हो भी तो उसके भी हृदयमें उनकी नैतिकताकी धाक सुस्थिर है। उनके ग्राहक बड़ी संख्यामें हैं और वह निरन्तर बढ़ रही है। उनका विश्वास भी इतना है कि किसान दश-दश, बीस-बीस हजार रुपया बैंकमें न रखकर उनके पास रख जाते हैं और पण्डितजी उन रुपयोंको एक-एक लिफाफेमें उनके नामसे अलग रखते है । किसान जब भी समय-बेसमय आता है वे रुपये उसे थमा दिये जाते हैं । पण्डितजीकी इस नीतिको उनके सुपुत्रोंने भी अपना रखा है। 'एक भाव' की दुकान चलाना और किसानों तथा ग्राहकोंका ऐसा विश्वास अजित करना आजके समयमें कम है। पण्डितजीकी निस्पृहता इतनी है कि स्वतन्त्रता सेनानियोंको शासनने कई सुविधाओंके साथ जमीनें भी दी थीं। पर पण्डितजीने उनकी चाह न करके उपेक्षा कर दी। जब उन्हें समझाया गया कि 'अन्य हजारों स्वतन्त्रता सेनानियोंको भी ये सुविधाएं दी गयी हैं, आप भी स्वीकार करें।' तब पण्डितजीने उन्हें स्वीकार किया। समाज और उसकी संस्थाओंको मन्त्री, अध्यक्ष आदि पदोंसे जो मार्ग-दर्शन दिया है वह उल्लेखनीय विद्वत्परिषद्, वर्णी ग्रन्थमाला जैसी सार्वजनिक संस्थाएँ हों और चाहे स्थानीय नाभिनन्दन दिगम्बर जैन हितोपदेशनी संस्था हो, सभीका पण्डितजीने निष्ठाके साथ संचालन किया है। - साहित्य-साधना तो उनके जीवन व्यापी है और आज भी ८५ वर्षकी अवस्थामें उसमें तन्मयताके साथ लगे हुए हैं । वस्तुतः वे असाधारण प्रतिभा और बहु आयामी व्यक्तित्वके धनी हैं। उन्हें अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पणके अवसरपर हमारे बहुशः नमन है । वे स्वस्थ मेधा, स्वस्थ वाणी और स्वस्थ शरीरसे युक्त शत वर्ष जोवी हों। अभिनन्दनीयका अभिनन्दन •पं० रवीन्द्रकुमार जैन, विशारद, दमोह हमने श्रद्धेय व्याकरणाचार्यजीको बहत देरमें पहचाना । उनका अभिनन्दन इससे बहुत पहले हो जाना चाहिए था। किन्तु 'जब जागे तभी सवेरा' की उक्तिके अनुसार उनका अब अभिनन्दन हो रहा है, यह खुशीकी बात है। पण्डितजीसे कोई ऐसा क्षेत्र नहीं छूटा, जिसमें उन्होंने अधिकारपूर्वक कार्य न किया हो । राष्ट्रीय क्षेत्रमें की गयी उनकी सेवा और त्यागको कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। वे 'स्वतन्त्रता सेनानी के रूपमें प्रदेशमें तथा देशमें हमेशा याद किये जायेंगे। समाजके क्षेत्रमें उन्होंने दस्सापूजाधिकारके आन्दोलनमें सक्रिय भाग लिया और वह अधिकार उन्हें दिलाया । वे आज हमारे साथ बराबरीमें हैं । साहित्य-साधना तो उनकी अनूठी है। वे आज भी आगमके पक्षधर हैं और आगमानुसार अनेक विषयोंका स्पष्टीकरण करनेमें संलग्न हैं । हम उन्हें श्रद्धाके साथ नमन करते और उनके स्वस्थ एवं शतायुष्क जीवनकी कामना करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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