________________
हे सरस्वतीके वरदपुत्र ! शत-शत वन्दन शत-शत प्रणाम
डॉ० कस्तूरचन्द्र 'सुमन', श्रीमहावीरजी हे सरस्वती के वरदपुत्र ! शत शत वन्दन शत शत प्रणाम ।
१
सम्वत् उन्नीस सौ बासठ के शुभ भाद्र मास की शुभ वेला । शुभ शुक्ल पक्ष तिथि शुभ सातें थी भारत-भू की अलवेला ॥ गोलापूर्वान्वय में जन्में निजवंश कोठिया के ललाम । हर्षाए नगरनिवासी सब तब भूल गये थे दुःख तमाम ॥
वर्णी जी का कुछ योग मिला पढ़ने का अवसर हाथ लगा। चल दिये बनारस पढ़ने को था नहीं संग कोई बन्धु सखा ॥ साहित्य जैनदर्शन शास्त्री उत्तीर्ण हुए स्याद्वाद-धाम । व्याकरणाचार्य व न्यायतीर्थ पदवियाँ प्राप्त की गंग-धाम ।।
भारत वसुन्धरा धन्य हुई, धरती का कण-कण हर्षाया । हो गयी पुनीता सोरई-भू 'राधादेवी' ने सुत जाया । यों जन्म-भूमि जननी दोनों हो गयीं वंद्य पावन सु नाम । श्री सिंघई 'मुकुन्दलाल'-नन्दन को वन्दन मेरा है अकाम ॥
गम्भीर विचारक चिन्तक है जिन आगम के अध्येता है। आगम विरोध डटकर करते आगम पर चोट न सहते हैं । जयपुर में हुयो तत्त्वचर्चा के प्रथम समीक्षक को प्रणाम । उस समय पक्षधर आगम के राधा सुत ही थे जग-ललाम ।।
हर्षायी राधा देख लाल हर्षाये लख सुत मुकुन्दलाल । पर पढ़ न सके जीवनरेखा प्यारे सुत की जो रही भाल ॥ त्रय मास मात्र देकर दुलार चल दिये पिताश्री स्वर्गधाम । माता का प्यार बना सम्बल बच रहा सहारा जननि-नाम ॥
निश्चय-व्यवहार उभय जग में हैं उभय नेत्र सम प्रिय दोनों। गति को आवश्यक चरण-युगल जैसे सरिता को तट दोनों । शिव-पथ के दोनों साधन हैं दोनों से सधता मोक्ष-धाम । तज ग्रन्थि लिखा राधा सुत ने निश्चय-व्यवहार है ग्रन्थ नाम ॥
८ क्रमबद्ध न केवल पर्याएं वे तो अक्रम भी होती हैं। जो लिखी पुस्तकें वे जग की उत्पन्न भ्रान्तियाँ हरती हैं। शान्तिसिन्धु-सम्पादन का हर्षित होकर के किया काम । गजरथ विरोध के अग्रदूत विद्वत् परिषद् के हैं ललाम ।।
जननी भी बारह वर्ष बाद एकाकी इनको छोड़ गयी । संघर्षों में जीवन बीता विपदाएँ आयीं नई-नई ।। यों माता-पिता विहीन हुए तब तजा आपने पित-धाम । वारासिवनी में मामा घर आकर पाया था लघु विराम ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org