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________________ ५६ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्थ अनुमान और श्रुत ये पाँच ज्ञान सर्वथा परोक्ष हैं तथा अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार ज्ञान कथंचित् प्रत्यक्ष हैं और कथंचित् परोक्ष हैं । अब यहाँ ये प्रश्न उपस्थित होते हैं कि मतिज्ञानके भेद स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान तथा श्रतज्ञान ये सब सर्वथा परोक्ष क्यों है ? तथा अवधि, मनःपर्यय और केवल ये ज्ञान सर्वथा प्रत्यक्ष क्यों है ? व इसी प्रकार मतिज्ञानके ही भेद अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये ज्ञान कथंचित प्रत्यक्ष और कथंचित् परोक्ष क्यों हैं ? इन प्रश्नोंका समाधान यह है कि आगममें प्रत्यक्ष और परोक्ष शब्दोंके दो-दो अर्थ स्वीकार किये गये है । अर्थात् एक प्रत्यक्ष तो वह ज्ञान है जो इन्द्रिय अथवा मनकी सहायताकी अपेक्षा किये बिना ही होता है और दूसरा प्रत्यक्ष वह ज्ञान है जिसमें पदार्थका विशद ( साक्षात्कार ) रूप बोध होता है। इसी प्रकार एक परोक्ष तो वह ज्ञान है जो इन्द्रिय अथवा मनकी सहायतासे होता है और दूसरा परोक्ष वह ज्ञान है जिसमें पदार्थका अविशद (असाक्षात्कार) रूप बोध होता है। प्रत्यक्ष और परोक्षके उक्त लक्षणोंमेंसे पहला-पहला लक्षण तो करणानुयोगको विशुद्ध आध्यात्मिक पद्धतिके आधारपर निश्चित किया गया है और दूसरा-दूसरा लक्षण द्रव्यानुयोगकी तत्त्वप्रतिपादक पद्धतिके आधारपर निश्चित किया गया है। पहला-पहला लक्षण तो ज्ञानोंकी स्वाधीनता व पराधीनता बतलाता है और दूसरा-दुसरा लक्षण ज्ञानोंके तथ्यात्मक स्वरूपका प्रतिपादन करता है। इस विवेचनके आधारपर मैं यह कहना चाहता हूँ कि स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और श्रुत ये सभी ज्ञान इन्द्रिय अथवा मनकी सहायतासे उत्पन्न होनेके आधारपर पराधीन होनेके कारण करणानुयोगकी विशद्ध आध्यात्मिकदृष्टिसे भी परोक्ष हैं व इनमें पदार्थका अविशद ( असाक्षात्कार ) रूप बोध होनेके कारण द्रव्यानुयोगकी तथ्यात्मकस्वरूप-प्रतिपादनदृष्टिसे भी परोक्ष हैं, अतः सर्वथा परोक्ष है। इसी तरह अवधि, मनःपर्यय और केवल ये तीन ज्ञान इन्द्रिय अथवा मनकी सहायताके बिना ही उत्पन्न होनेके आधारपर स्वाधीन होनेके कारण करणानुयोगकी विशुद्ध आध्यात्मिकदृष्टिसे भी प्रत्यक्ष है व इनमें पदार्थका विशद (साक्षात्कार) रूप बोध होनेके कारण द्रव्यानुयोगकी तथ्यात्मकस्वरूप-प्रतिपादनदृष्टिसे भी प्रत्यक्ष हैं, अतः सर्वथा प्रत्यक्ष है । लेकिन अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चार ज्ञान इन्द्रिय अथवा मनकी सहायतासे उत्पन्न होनेके आधारपर पराधीन होनेके कारण करणानुयोगको विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टिसे जहाँ परोक्ष हैं वहाँ इनमें पदार्थका विशद (साक्षात्कार) रूप बोध होनेके कारण द्रव्यानुयोगकी तथ्यात्मकस्वरूप-प्रतिपादनदृष्टि से प्रत्यक्ष हैं, अतः कथंचित् परोक्ष और कथंचित् प्रत्यक्ष हैं। यहाँपर यदि यह प्रश्न किया जाय कि पदार्थका विशद (साक्षत्कार) रूप बोध क्या है ? और पदार्थ का अविशद (असाक्षात्कार) रूप बोध क्या है ? तो इसका समाधान यह है कि जिस बोधमें पदार्थदर्शन साक्षात् कारण होता है वह बोध पदार्थका स्पष्ट बोध होनेके आधारपर विशद ( साक्षात्कार ) रूप बोध कहलाता है और जिस बोधमें पदार्थदर्शन साक्षात् कारण न होकर परंपरया कारण होता है वह बोध पदार्थका अस्पष्ट बोध होनेके आधारपर अवशिद (असाक्षात्कार) रूप बोध कहलाता है और यह बात पूर्वमें बतलायी जा चकी है कि पदार्थका विशद (साक्षात्कार) रूप बोध ही प्रत्यक्ष है और पदार्थका अविशद (असाक्षात्कार) रूप बोध ही परोक्ष है । यतः अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप मतिज्ञानोंमें व अवधि, मनःपर्यय और केवलरूप ज्ञानोंमें पदार्थदर्शन साक्षात् कारण होता है, इसलिये इस दृष्टिसे ये सब ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाते हैं और यतः स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क तथा अनुमानरूप मतिज्ञानोंमें व श्रुतज्ञानमें पदार्थदर्शन साक्षात् कारण नहीं होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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