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२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ११३
___ यहाँपर बहोरीबंदके लेखका उल्लेख आवश्यक है। यह जैजाकभुक्ति (चंदेलोंके राज्य) के बाहर डाहल
कलचुरि-चेदि राज्य) में था। यहाँ शांतिनाथकी प्रतिमापर एक लम्बा,प्रसिद्ध लेख है, पर उस पर संवत् स्पष्ट नहीं पढ़ा गया है । किसी-किसीने इसे वि० सं० १०१० (ई० ९५४) पढ़ा है३१ । इसमें गयाकर्णदेव सामन्त गोल्हणदेवके समयमें गोलापूर्वाम्नायके, माधवनन्दिके अनुयायी साधु महाभोजद्वारा शांतिनाथके मंदिरके निर्माणका उल्लेख है । यहाँ “गोलापूर्वाम्नाये" शब्द महाभोजके लिये प्रयुक्त लगता है। वैसे जैसे उपकेशगच्छ व ओसवाल जाति दोनों ओसियासे उदभत हैं, हो सकता है गोलापूर्वाम्नाय कोई गच्छ या गण रहा हो। कलचुरि राजा गयाकर्ण वही हैं जिनका विवाह गुहिल विजयसिंहकी पुत्री अल्हणदेवीके साथ हुआ था। चंदेल मदनवर्माने किसी चेदि राजाको हराया था, इसे गयाकर्ण ही माना गया है" । गयाकर्णका समय ई० ११२३ से ११५३ माना गया है । यह स्पष्ट है कि यह लेख वि० सं० १०१० का नहीं हो सकता।
यह स्पष्ट है कि बारहवीं शताब्दीके मध्यमें गोलापूर्व जाति काफ़ी दुरत क फैलकर बस चुकी थी। अहारके ई० १२३१ के लेखमें "प्रख्यातवंशे गोलापूर्वान्वये" लिखा गया है। इससे यह माना जा सकता है कि गोलापर्व जाति बारहवीं शताब्दीसे कई सौ वर्ष पहले विद्यमान थी।
गोलाराडे जातिके लेख ग्यारहवीं शताब्दोके अन्तसे मिलते हैं। ७ भिडके आसपास इनके प्राचीन लेख पाये गये हैं या नहीं, यह ज्ञात नहीं हो सका है। गोलसिंघारे जातिके ई० १६३१ के पूर्व उल्लेख देखनेमें नहीं आये।
५. गोलापूर्व जातिमें कुछ गोत्र कुछ स्थानोंके नामपर हैं । चंदेरिया, पपौरहा, मरैया, भरतपुरिया, भिलसैया, जतहरिया, धवलिया, बदरौहिया, हीरापुरिया; कनकपुरिया, पटोरिया, दगँया, सिरसपुरिया व गडोले ग्रामके नामपर ही हुए हैं । चंदेरिया चंदेरी (जि० गुना), पपौरहा पपौरा (जि० टीकमगढ़); हीरापुरिया हीरापुर (जि. सागर), धमोनिया धामोनी (जि. सागर) व मरैया मरौरा (जि. झाँसी) के वासी थे। भिलसैया सम्भवतः उसी भेलसी ग्रामके वासी थे जहाँ नवलशाह चंदेरियाके पूर्वज रहते थे। अन्य ग्रामोंकी पहिचानके लिये शोधको आवश्यकता है। गोलालारे जातिमें चिनौरिया, जसौरिया, जैपुरिया, नागपुरिया, पचमढ़िया आदि गोत्र हैं, पर सम्बन्धित ग्राम पहिचानमें नहीं आये हैं । उपरोक्त पाँच नियमोंपर विचारसे ये निष्कर्ष निकलते हैं (मानचित्र-१)।
गोलापूर्व जातिका मूलस्थान पपौरासे धामोनी (करीब चालीस मील) व आसपास नश्चित है। यह टीकमगढ़ व छतरपुरका दक्षिणी भाग व बंडा तहसीलका उत्तरी भाग है। इस क्षेत्रमें ही पपौरा, अहार, द्रोणागिरि व नैनागिरि जैन तीर्थ हैं ।
३. गोलालारे : इस जातिका मूलस्थान भिंडके आसपास प्रतीत होता है । इसे निश्चित करनेके लिये शोधकी आवश्यकता है।
३ गोलसिंघारे: ये भी भिडके आसपाससे उत्पन्न लगते हैं। इनके प्राचीन लेख न मिलनेसे लगता है कि सम्भवतः ये गोलालारे जातिकी ही शाखा है।
___ गोलापूर्व ब्राह्मणोंके बारेमें विशेष जानकारी नहीं मिल सकी है । ये भिंडके उत्तरमें आगरा व इटावा जिले में अधिकतर रहते हैं। सन् १९४० में ये अपनी जनसंख्या ३-४ लाख बताते थे।१५ परन्त जनसंख्याके अनुमान अक्सर गलत होते हैं। यथा अग्रवालोंकी जनसंख्या एक करोड़ बताई गयी है जो स्पष्टतः असम्भव है ।२२ फिर भी गोलापूर्व-ब्राह्मणोंकी वर्तमान जनसंख्या कम-से-कम ६०-८० हजार होना चाहिये । इनकी उत्पत्तिके बारेमें कुछ किंवदन्तियाँ हैं, पर वे काल्पनिक ही मालूम होती है। इन्हें सन्नाढ्य ब्राह्मणोंसे उद्भूत
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