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१०८ : सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ
. ३. जिझौतिया ब्राह्मणोंके बारेमें कहा जाता है कि वे बुन्देलखण्डमें बुन्देले महाराजा जुझार सिंहके कालमें आये, इसलिये वे जुझौतिया कहलाये । जुझौतिया नाम वास्तव में जुझौति (जैजाकभुक्ति) से पड़ा, जो बुन्देलखण्ड क्षेत्रका पुराना नाम है।
४. कछवाहा राजपूत वर्तमानमें अपने को कुशवाहा लिखते हैं और रामके पुत्र कुशसे उत्पत्ति बताते है । पर सबसे पुराने शिलालेखोंमें इन्हें कच्छपघट या कच्छपघात कहा गया है ।
५. कान्यकुब्ज (कनौजिया) व सरयूपारी ब्राह्मण अपनेको किसी कान्यजी व कुब्जजीका वंशज कहते हैं ।२° वास्तवमें कान्यकुब्ज ब्राह्मणोंका नाम कन्नौजके पास वास करनेसे हुआ है।
६. खण्डेलवाल शब्दकी उत्पत्ति खण्डु ऋषिसे या राजा गिरखण्डेलसे बताई जाती है२१,२२,२७ । पर यह वास्तव में खण्डेला स्थानके कारण है ।
७. महेसरी (माहेश्वरी) शब्दकी उत्पत्ति महेश्वर अर्थात् शिवजीसे कही जाती है । पर संभवतः यह नाम भरतपुरके पार महेशन स्थानके कारण है ।
अग्रवाल जातिकी उत्पत्तिके बारेमें अनेक पुस्तकोंमें ऊहापोह मिलता है। इनके अग्रवाल कहलानेका कारण समाजमें अग्रणी होना, अगरुकी लकड़ीका व्यापार करना, आगरा शहर आदि कहे जाते हैं। पर इन्हें शिलालेखोंमें अग्रोतकान्वयका कहे जाने आदिके कारण यह निश्चित है कि ये वर्तमान अग्रोहा (प्राचीन अगोदक) स्थानसे निकले हैं।
कई बार भ्रमका कारण मूलपुरुषकी कल्पना है। यह इतनी व्यापक है कि कुछ लेखकोंने इसे जाति शब्दकी परिभाषामें स्थान दिया है । पर किसी भी जातिमें मूलपुरुष होना संभव प्रतीत नहीं होता।
१. एक ही व्यक्तिके पुत्रोंसे एक स्वतंत्र जाति कभी नहीं बन सकती क्योंकि एक ही व्यक्तिके वंशजोंमें विवाह सम्बन्ध निषिद्ध हैं ।२२।
२. किसी दस-बीस परिवारोंसे भी कोई स्वतन्त्र जाति नहीं बन सकती। क्योंकि जिस समाजमें इन परिवारोंका विवाह सम्बन्ध पूर्वकालमें होता होगा उनसे अचानक सम्बन्ध तोड़ना मुश्किल है। किसी समाजसे दस-बीस परिवार तभी अलग हो सकते है जब किसी कारणसे इन परिवारोंकी जातिच्युत कर दिया गया हो।
यहाँ पर अग्रवाल जातिका उदाहरण उपयोगी है। अक्सर अग्रवालोंको महाराजा अग्रसेनके पुत्रोंसे उत्पन्न कहा जाता है । जैसा कि बदलूराम गुप्ता । २२ का मत है, यह स्पष्ट ही तर्क संगत नहीं है । अग्रवाल शब्दकी उत्पत्ति अग्रोहाके कारण है, यह तो निश्चित है । यह हो सकता है कि किसी अग्रसेनके कारण अग्रोतक नाम हआ हो । पर अगर यह सही है तो अग्रसेन व अग्रवाल जातिका कोई सीधा सम्बन्ध संभव प्रतीत नहीं होता। क्योंकि अगोदक नाम ई० पूर्व पहली-दूसरी शताब्दीके अवशेषोंमें पाया गया है जबकि अग्रवाल या किसी अन्य वैश्य जातिका ८ वीं शताब्दीके पूर्व अस्तित्व होनेका कोई प्रमाण नहीं मिलता।
किसी जातिकी उत्पत्ति के बारेमें अनुसंधानमें निम्नलिखित नियम उपयोगी होंगे।
१. कुछ अपवादोंको छोड़कर लगभग सभी वैश्य जातियोंके नाम किसी विशेष स्थानके कारण पड़े है। अगर कोई स्पष्ट कारण न हो, तो सबसे पहले इस स्थानको पहचाननेका प्रयास किया जाना चाहिये ।
२. कई बार इस मूलस्थानकी पहिचान किसी प्रख्यात स्थानसे की जाती है, पर ऐतिहासिक दृष्टि व गलत प्रमाणित होता है । इस पहिचानमें इस तथ्योंसे पुष्टि की जानी चाहिये।
(क) उस जातिका उस स्थानके आस-पास वास । (ख) बहतसे परिवारोंका उस स्थानके आस-पाससे आना।
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