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४४ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रन्य
२ दुमेले : विवाह आदिसे या अन्य किसी युक्तिसे विरोध समाप्त कर दो व्यक्तियोंका मिलाप कराने
वाले श्रावकोंका गोत्र है। ३ कपासिया : कपासका व्यवसाय करने वालोंका गोत्र ४ दंडकार : प्रशासन करके आजीविका करनेवालोंका गोत्र । ५ सनकुटा : सनके व्यापारियोंका गोत्र ।
जिन शेष चौदह गोत्रोंके नामकरणका आधार अन्वेषणीय है उनके नाम हैं
१. खाग, २. फुसकेले, ३. मरैया, ४. टेंटवार, ५. छोरकटे, ६. खुर्देले, ७. रौतेले, ८. निर्मोलिक, ९. सपोतहा, १०. पतरिया, ११. घंघोलिया, १२. नाहर, १३. सांधेले. १४. सिरसपरिया। वर्तमानमें उपलब्ध गोत्र
नवलशाह द्वारा बताये ५८ गोत्रोंमें निम्न गोत्र ही सम्प्रति परिचयमें आते हैं । यथा
१. खाग, २. फुसकेले, ३. चन्देरिया, ४. मरैया, ५. बनोनहा, ६. टेंटवार, ७. कोठिया, ८. जझोतिया, ९. वैरिया, १०. खर्देले, ११. गोदरे. १२. गडोले, १३. सनकटा. १४. सोंग्या, १५. नाहर, १६. सांधेले, १७. पडेले, और १८. पटोरहा ( पटोरिया), १९. कपासिया।
वर्तमानमें कुछ गोत्र ऐसे भी मिलते हैं, जिनका इस सूचीमें उल्लेख नहीं है । मलैया (मालवीय) और चौसरा ऐसी ही गोत्र है । सूचीमें एक सोंसरा गोत्रका उल्लेख है, जो सम्भवतः कालान्तरमें चौसरा हो गया है। रांधेलीय गोत्र रहदेलेका अपरनाम ज्ञात होता है । मलैया, जिसे मालवीय कहा जाने लगा है, मरैया गोत्रका अपर नाम है। ब्राह्मण-गोत्र
____ नवलशाहके अठ्ठावन गोत्रोंमें उपलब्ध रावत और जुझौतिया गोत्र ब्राह्मणोंमें भी पाये जाते हैं। रावत गोत्र खण्डेलवालोंमें भी पाया जाता है। ब्राह्मणोंमें एक "गोला पूर्व" गोत्र भी होता है। इस गोत्रके ब्राह्मण राजस्थानमें जयपुर, जोधपुर, धौलपुर, कोटा, भरतपुर, उत्तरप्रदेशमें आगरा तथा मध्यप्रदेशमें इन्दौर, खण्डवा और नरसिंहपुर जिलोंमें बसे हुए हैं । मध्यप्रदेशके होशंगाबादमें तो गोलापूर्व ब्राह्मणोंका एक पृथक् वार्ड ही बताया गया है। गोलापूर्व ब्राह्मण-गोत्रका उद्भव
जैन 'गोलापूर्वान्वय'के समान इस गोत्रके ब्राह्मण मूलतः गोल्लदेशके निवासी ज्ञात होते हैं । सम्भवतः ये भी जैनधर्मोपदेशकके उपदेशसे प्रभावित होकर जैन हो गये थे। किन्तु जैनधर्मको किसी कारणवश अंगीकार करनेमें असमर्थ हो जानेसे ये पुनः अपना पूर्व वैष्णव धर्म मानने लगे। जिन ब्राह्मणोंने अपने धर्मको नहीं छोड़ा था, उन्होंने इन्हें जाति-च्युत समझकर अंगीकार नहीं किया, फलस्वरूप ये ब्राह्मण गोलापूर्वगोत्रके नामसे प्रसिद्ध हुए और ये परस्परमें ही अपना सामाजिक व्यवहार करने लगे।
बताया जाता है कि ये मूलतः कृषक हैं। गोपूजक हैं। कच्चा भोजन सजातियोंके घर करते हैं । विजातियोंके घर पक्का भोजन ही ग्रहण करते हैं। इनके आचार-विचार अग्रवालोंके आचार-विचारोंके समान होते है। गोलापूर्वान्वयके तीन भेद
____ नवलशाह कृत हिन्दी वर्द्धमान-पुराणमें इस अन्वयके तीन भेद (समूह) बताये गये हैं-१. बीसविसे, २. दसविसे और ३. पचविसे । उन्होंने लिखा है
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