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________________ सोरईके प्राचीन जिनमन्दिरका वेदिका लेख : एक दस्तावेज • डॉ० दरबारीलाल कोठिया , बीना सोरईके एक प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिरकी वेदिकाके नीचे पाषाण-पट्टीपर जो लेख खुदा हुआ है उससे इस ग्रामको प्राचीनता, सम्पन्नता और जनबहुलतापर अच्छा प्रकाश पड़ता है। यह मंदिर कैसे बना और कैसे उजड़ा, इसका तो इस लेखमें कोई संकेत नहीं मिलता। किन्तु वृद्ध-परम्परासे सुना जाता है कि मन्दिरके निर्माता सिंघई मोहनदास राजाके वित्ताधिकारी जैसे किसी उच्च पदपर प्रतिष्ठित थे और राजाके अत्यन्त प्रिय थे । वह उनपर बहुत प्रसन्न था। राजाने उनसे आग्रह किका कि आप जिन भगवानको भक्तिके लिए किलेसे सटा हुआ अपना जिनमन्दिर बनवा लें। सिंघई मोहनदासने राजाके प्रेम और आज्ञासे दिगम्बर जैन मंदिर बनवा लिया और विधिवत् उसकी प्रतिष्ठा भी हो गई। कुछ लोगोंने इसके विरुद्ध राजाके कान भर दिये और राजाने कुपित होकर मन्दिरजीसे श्रीजी हटवा दिए। कितने वर्षों तक इस मन्दिरमें श्रीजी विराजमान रहे, कहा नहीं जा सकता । लेखमें इतना ही उल्लेख है कि विक्रम संवत् १८६४ में इसकी प्रतिष्ठा हई और मन्दिरकी नींव वि०सं० १८६२ में रखी गयी। दो वर्ष इस मन्दिरके निर्माणमें लगे । बादको इसमें प्राईमरी स्कूल लगने लगा। . इसमें प्राईमरी स्कूल कबसे लगा, यह जानकारी शासनके कागजातोंसे प्राप्त हो सकती है। पर अनुमानसे संप्रति इतना कहा जा सकता है कि १८२ वर्ष पूर्व बने इस मंदिरमें, कुछ वर्ष खाली पड़ा रहनेपर, १५० से १७५ वर्षों तक स्कूल लगता रहा है। व्याकरणाचार्य श्रद्धेय पं० बंशीधरजी (८४) उनके पिताजी और पितामहने इसी स्कूलमें पढ़ा है । हमने भी इसीमें सत्तर वर्ष पूर्व अध्ययन किया था। इस लेखमें कई तथ्य महत्त्वपूर्ण उपलब्ध होते हैं । उनमें कुछ निम्न प्रकार हैं१. यह मन्दिर माघ वदी १३, वि०सं० १८६४ में प्रतिष्ठित हुआ था। २. इसकी नींव अषाढ़ सुदी ७ बुधवार, वि०सं० १८६२ में रखी गयी थी। ३. मूल संघ, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ और कुन्दकुन्दाचार्याम्नायमें जिनागमके उपदेशानुसार इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई थी। ४. इसके प्रतिष्ठाकारक थे वैश्यवर्ण, वंश इक्ष्वाकु, गोत्र पद्मावती, [जाति] गोलापूर्व, बैंक चन्देरिया, श्री साहू किसोरी, उनके पुत्र (प्रथम) कूते सिंघई, दूसरे पुत्र अजब सिंघई, कूते सिंघईके दो पुत्र, (प्रथम) श्री साहू इन्द्रमन, उसकी पत्नी मौनदे, उसका प्रथम पुत्र सिंघई धनसींघ, उसकी पत्नी दीपा, उसका पुत्र धोकल, और द्वितीय पुत्र सिंघई कुवंरमन, उसकी पत्नी पजो, उसके दो पुत्र, प्रथम मनराखन, द्वितीय करनजू । कृते सिंघईकी पत्नी सीता, उसके लघु पुत्र (द्वितीय पुत्र) यज्ञ (प्रतिष्ठा) कर्त्ता (कारक) श्री सिंघई मोहनदास, उसकी पत्नी जैको, उनका पुत्र श्री लाला मान्धाता। ये सभी चिरंजीव हों । मन्दिरके निर्माता और प्रतिष्ठाकारक मख्यतया श्री सिंघई मोहनदास थे। ५. लेख में प्रतिष्ठाचार्यका नामोल्लेख नहीं है, जैसा कि आजकल होता है । किन्तु प्रतिष्ठा-कारकके दो हवलदारों (कार्यकर्ताओं-कारन्दाओं), एक श्री राउत हरीसिंघ लोधी ठाकुर, गोत खोरंमपुरिया और द्वितीय हवालदार उदीनन्द साव कड़ोरे पचलोरो दामपंवार, लड़िया लालजू व मोकम व उपसाव धोकलजी, वीजकके लेखक श्री फौजदार ललू कडोरे पिपलासेवारे, वसंत कारीगर जैसोंके नाम अंकित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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