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१० : सरस्वती - वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ
जिस दिन हम लोग अमरावती जेल में पहुँचे, उस दिन शनिवार था । दूसरे दिन रविवारकी छुट्टी थी । हम सभी व्यक्ति श्री ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी और पद्माभ तैलंगके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने के लिए एक साथ बैठे तथा अपना भविष्यका कार्यक्रम निर्धारित करनेकी बात हम लोगोंने सोची । सब लोगोंने एक स्वरसे पं० ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी और पद्मनाभ तेलंगको गुनाहखाने भेजने के विरोधमें कार्यक्रम निर्धारित करनेका निर्णय किया। यह तो ठीक था, पर मैंने सबके सामने यह बात रखी कि सभीको व्यक्तिगत हैसियत से भी विरोध करने के लिए तैयार रहना चाहिए, तो सभी पीछे हट गये ।
सोमवारके प्रातः जिस समय सुपरिन्टेन्डेन्ट आनेवाला था, उसके पहले, मुझे और श्री हर्षचन्द मारौठी दमोहवालोंको छोड़कर सभी सुपरि० के कार्यक्रममें सम्मिलित होनेके लिए वैरकसे बाहर आ गये और उसके आदेशका पालन करने लगे । इसके पश्चात् जेलरके साथ सुपरि० बैरक में आया और मुझसे कहा कि 'कार्यक्रममें क्यों सम्मिलित नहीं हुए, क्या तुम्हें गुनाहखाने में जाना है ?" मैंने उत्तर दिया कि मैं श्री ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी और पद्मनाभ तैलंगको गुनाहखाने में भेजने का विरोध करता हूँ । तब उसने जेलरसे कहा कि इन्हें गुनाहखाने में भेज दो। फिर मारौठीजीके पास वह पहुँचा और कहा कि तुम भी गुनाहखाने में जाना चाहते हो । उन्होंने उत्तर दिया कि जहाँ चाहो वहाँ भेज दो । मैं भी ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी और पद्मनाभ तेलंगको गुनाहखाने में भेजने का विरोध करता हूँ ।' इस तरह हम दोनोंको गुनाहखाने में भेज दिया गया और आगे चलकर हमारी 'बी' क्लासकी सभी सुविधायें छीनकर 'सी' क्लासमें परिवर्तित कर दी गईं। तीन माह कैदकी सजा पूरी होनेपर जेलके नियमोंको तोड़नेके आधारपर जेलके अन्दर ही मजिस्ट्रटको बुलाकर केस चलाया । हमने जमानत पर छूटने की दरख्वास्त दी, जिसे मजिस्ट्रेटने अस्वीकार कर दिया । तब हम दोनोंने अमरावती में रह रहे अपनी सम्बन्धियोंके पास संदेश भिजवाया कि जमानतके लिए सेशन कोर्टमें जमानत स्वीकृत करनेके लिए दरख्वास्त देनेकी व्यवस्था करो। हम लोगोंकी जमानत स्वीकार कर ली गयी और हमारे भतीजे पं० बालचन्द्र शास्त्री, अमरावतीके प्रतिष्ठित सिंघई पन्नालालजी रईस - को, जो जमानतदार थे, साथ लेकर जेल आये । साथमें मारौठीके जमानतदार भी थे। इन सबको जेल फाटकपर चार-पाँच घण्टे इन्तजार करना पड़ा, तब कहीं शामको ५ बजे हम लोगोंको जमानतपर छोड़ा गया । जेलसे बाहर आनेपर केस आगे बढ़ा । उसमें हमलोगोंके वकीलने, जिनका नाम मैं भूल रहा हूँ, बिना फीस लिए केस लड़ा । परिणाम यह हुआ कि अदालतने हम दोनोंको निर्दोष घोषित कर छोड़ दिया ।
को० : स्वतन्त्रतासे सम्बन्धित और उसके बाद उत्पन्न परिस्थितियोंके सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं ? व्या० : स्वतन्त्रता आन्दोलन में यद्यपि देशवाशियोंने निःस्वार्थ भाव से भी भाग लिया था, परन्तु उस समय कांग्रेसके जो चुनाव होते थे, उनमें कांग्रेसीजन प्रायः अनैतिक हथकण्डे अपनाकर सफलता प्राप्त कर लेते थे । ऐसी घटनायें हमेशा होती ही रहती थीं। मैं ऐसी बातोंका विरोध भी करता था । पर कांग्रेसके उच्च पदाधिकारी भी उसको उपेक्षित कर देते थे । ये बातें राजनैतिक नेताओंके भावी आचरणोंका संकेत थीं ।
ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई थी । बोनाकी नगर कांग्रेस कमेटी के सदस्योंने सर्वसम्मतिसे मध्यप्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी सदस्यता के लिए मेरे न चाहते हुए भी मुझे उम्मीदवार
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