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________________ ६ : सरस्वती-वरदपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ होकर व्हीकल फैक्ट्री जबलपुरमें कार्यरत हैं और तीसरा पुत्र विनीत कुमार, बड़े भाईके साथ वस्त्रव्यवसाय में संलग्न है. इसके सिवाय वह बीमा, बैंक एवं पोस्ट आफिसमें फिक्स डिपाजिट करानेका कार्य भी करता है। तीनों पत्रोंके विवाह हो चुके हैं। विभव कुमारका सम्बन्ध सेठ बाबूलालजी सागरकी पुत्री सुगन्धी बाई, विवेककुमारका सम्बन्ध सेठ देवेन्द्र कुमार जी सागरकी पुत्री नलिनो बाई तथा विनीत कुमारका सम्बन्ध सेठ हकमचन्द्रजी सागरकी पुत्री किरणबाईके साथ सम्पन्न हुए हैं। पण्डितजीकी तीनों बहुएँ भी पुत्रोंकी तरह कर्तव्यनिष्ठ, सेवाभावी, विनम्र और आज्ञाकारिणी हैं। विभवके एक पुत्र चि० वीरेश कुमार और पाँच पुत्रियां--प्रीति, दीप्ति, नीति, स्मृति और कृति हैं। विवेककुमारसे दो पुत्र-विशेष और क्षितिज तथा एक पुत्री-रांगोली है । और विनीतकुमारके तीन पुत्रियाँ-निधि, सोनू एवं गुड़िया है। पण्डितजीकी तीनों पुत्रियोंके भी सम्बन्ध हो चुके हैं । बड़ी पुत्री विमलाबाई (५७), का डॉ० मोतीलालजी खुरईके साथ, दूसरी पुत्री पुष्पाबाई (३७) का मा० मुन्नालालजी टीकमगढ़ और तीसरी पुत्री वैजयन्तीबाई (३५) का डॉ० हीरालालजी रोवाके साथ हआ है। पण्डितजीके तीनों दामाद सुयोग्य और अपने-अपने कार्यमें रत हैं। मधुर एवं स्नेहपूर्ण सम्बन्ध : पण्डितजीके स्वजन और परिजन सभीके साथ मधुर एवं अच्छे सम्बन्ध हैं। कूटम्बियोंके प्रति जहाँ अगाध स्नेह है वहीं ससुरालमें रहते हुए अपने ससुर शाह मौजीलालजी, काका ससुर शाह अर्जुनलालजी और शाह दयाचन्द्रजी तथा चचेरे सालों-शाह अमृतलाल, शाह खूबचन्द्र, शाह फूलचन्द्र, शाह स्व० निर्मलकुमार और शाह प्रेमचन्द्र एवं उनके परिवारोंके साथ भी पण्डितजीके स्नेहपूर्ण सम्बन्ध बने हए हैं। इनमें एकमात्र कारण उनकी लोकज्ञता, व्यवहारकुशलता और गम्भीरता है। उनका चिन्तन दूरगामी है। ससूरालपक्ष भी पण्डितजीका सदा आदर करता है। हमें एक घटना याद आती है । जब पण्डितजी स्वतन्त्रता-संग्रामके आन्दोलनमें सन् १९४२ में जेलमें थे और घरपर उनके प्रथम पुत्र सनतकुमारका स्वर्गवास हो गया था, तब पण्डित बालचन्द्रजी शास्त्री अमरावतीसे इस दुखमें संवेदना प्रकट करनेके लिए बीना आये और आते ही वे बीमार हो गये । बुखार ठीक नहीं हो रहा था। पण्डितजीके ससुर शाह मौजीलालजीने अपने मुनीम श्री कन्छेदीलालजीको अमरावतो भेजकर उनके बाल-बच्चोंको बीना बुलवा लिया और जब तक उनकी तबियत ठीक नहीं हुई तब तक सभीको अपने पास रखकर उनका इलाज करवाया । जब उनकी तबियत ठीक हो गयी तब उन्हें जाने दिया । ऐसी थी शाह मौजीलालजी की आत्मीयता और सहृदयता। अभी भी शाह परिवारके पण्डितजी तथा उनके कुटुम्बके साथ प्रिय सम्बन्ध हैं, जो अनुकरणीय हैं। विशेष गुण : पण्डितजीमें कुछ ऐसे विशेष गुण हैं जो अन्य में प्रायः दुर्लभ होंगे। इनमें कुछका यहाँ दिग्दर्शन कराना आवश्यक समझता हूँ-- (क) स्वाभिमान--पण्डितजी व्याकरणाचार्य हुए ही थे कि उन्हें स्थानकवासी साधुओंको अध्यापन करानेके लिए व्यावर (राजस्थान) से आमन्त्रण आया। वे वहाँ गये और पहले दिन उन्हें थोड़ा पढ़ाया। इसपर एक महाराज बोले--'पण्डितजी, इतना ही पढ़ायेंगे। आपसे पहलेके पण्डितजी तो दो-तीन घण्टे सुबह और इतने ही समय शामको पढ़ाते थे । “पण्डितजीने कहा कि--"आपने इतना पढ़ करके भी कुछ नहीं पढ़ा । इसप्रकारके पढ़ने-पढ़ानेसे क्या लाभ । कुछ अनुभव और मनन भी होना चाहिए । यदि आपको पूर्ववत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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