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२ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ३
३. सौरईका, व्यापारिक महत्त्वके अलावा, सांस्कृतिक महत्त्व भी है। यहाँ चन्देलवंश राजाओंके शासनकालके दो प्राचीन मठ (मन्दिर) हैं, जो पत्थर-ही-पत्थरके बने हैं और जिनमें एक मठ जैनोंका और दुसरा मठ हिन्दुओंका है । जैनोंके मठ (मन्दिर) में अभी भी खण्डित मूर्तियाँ विद्यमान रही है। इसके पास ही पूजादिके लिए उपयोगमें लाने हेतु पत्थरसे मजबूत बना एक जलकूप भी है। देख-भाल न होनेके कारण यह मठ आज अरक्षित दशामें पड़ा है।
४. यह 'रौनी' (रोहिणी) नदीके तटपर अवस्थित है, जो पासके बीहड जंगलसे निकली है और 'धसान' नदीमें जाकर 'ककरवाहा' ग्राम (ललितपुर) के पास मिली है।
५. 'सौंरई' का एक और महत्त्व है। वह है प्रशासनिक । इसके प्रशासनके लिए राजाका विशाल किला बना है, जो दो ओर (पश्चिम और उत्तर) से रौनो नदी के तटोंसे घिरा है एवं विस्तृत और ऊँचे टोलेपर निर्मित है। कहा जाता है कि यह किला राजा बखतबलीने बनवाया था, जो शाहगढ़ (म० प्र०) के राजाके अधीन था। इस किलेसे एक रास्ता भूमिके अन्दर-ही-अन्दर बगीचे में बनी सुन्दर वापिकाके लिए जाता है, जिससे राजाको रानियाँ वापिकामें स्नान करनेके लिए वहाँ जाती-आती थीं। दूसरा रास्ता मड़ावराके किले तक जाता है. जो सौंरईसे ५ किलोमीटर है। किन्तु अब ये दोनों रास्ते बन्द हैं। मालम पड़ता है कि राजनैतिक उथल-पुथल ही इन रास्तोंके निर्माणका कारण रही है।
६. किलेके पूर्वी द्वारपर उससे लगा हआ राजाके जैन दीवान द्वारा १८२ वर्ष पूर्व बनवाया दि० जैन मन्दिर है, जो वर्तमान में जिनप्रतिमाशून्य है। ज्ञात नहीं, इसमें कितने वर्षोंतक प्रतिमाजी विराजमान रहीं और कब कैसे वहाँसे उन्हें हटा दिया गया । मन्दिरके जिनप्रतिमारहित हो जानेपर उसमें शासनके द्वारा प्राइमरी स्कूल लगता रहा । इसी स्कूल में हमारे चरित्रनायककी प्रारंभिक शिक्षा हुई, जो १५०-१७५ वर्ष वहां रहा जान पड़ता है। मन्दिरके सर्वथा जीर्ण-शीर्ण और खण्डहर हो जानेके कारण अब उसमें स्कूल भी नहीं लगता । स्कूल दूसरी जगह लगने लगा है । आज वह मन्दिर खण्डहरके रूपमें अरक्षित दशामें पड़ा है ।
७. इस ग्रामके आस-पास पहले ताँबा और लोहा बड़ी मात्रामें निकलता रहा। अब तो कई वर्षोंके अन्वेषणके बाद यहाँ फास्फोरस पत्थर, जो खाद बनानेके काममें आता है तथा यूरेनियम जैसी महत्त्वपूर्ण धातुका भी भण्डार भू-वैज्ञानिकों एवं कुशल इंजीनियरोंने खोज निकाला है और बहुलतासे उसका काम चल रहा है। इससे इस ग्रामका राष्ट्रीय महत्त्व भी बढ़ गया है । यह हमारे एवं देशके लिए गर्व की बात है। इसके अतिरिक्त सिमेन्टका पत्थर, स्लेटका पत्थर आदि भी यहाँ उपलब्ध हुआ है।
८. इस ग्राममें वर्तमानमें तीन दिगम्बर जैन मंदिर हैं, २५-३० जैन घरोंके अतिरिक्त लगभग तीन हजारकी यहाँ आबादी-जनसंख्या है। (१) पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर (जिसे बड़ा मंदिर कहा जाता है) (२) छोटा मन्दिर और (३) बाजारका मन्दिर और तीनों ही बस्तीके बीचों-बीच स्थित हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि डॉ. पं० दरबारीलालजो कोठिया न्यायाचार्यने अपनी धर्मपत्नी स्व. चमेलोबाईको स्मतिमें ४,२००/०० रुपयोंसे बाजारसे लेकर बड़े मन्दिर और बड़े मंदिरसे छोटे मंदिर तक चौड़े-बड़े पत्थरोंको फर्सी बिछाकर अच्छा रास्ता बनवा दिया है, जिससे आने-जानेवालोंको बड़ी सुविधा हो गयी है । तथा २,५००/०० प्रदानकर बड़े मन्दिरकी छतका भी उन्होंने जीर्णोद्धार करा दिया है।
९. यह ग्राम है तो छोटा, लेकिन इसकी एक विशेषता और है। वह यह कि यह प्राच्य-विद्या प्राकृत एवं संस्कृतके विद्वानों(पण्डितों) की (आकर) खान है । व्याकरणाचार्यजी, पं० शोभारामजी महोपदेशक
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