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________________ विविधता और बहुभाषाओं के माध्यम की दृष्टि से भारतीय साहित्य जैन कथाओं का वर्गीकरण में अद्वितीय है। विक्रम संवत् के आरम्भ से लेकर उन्नीसवीं शती जैन कथा वाङ्मय एक विशाल आगार है जिसे किसी निश्चित तक जैन साहित्य में कथा ग्रंथों की अविच्छिन्नधारा पायी जाती है। परिधि में निबद्ध करना सहज नहीं है तथापि कथा साहित्य के विशारदों यह कथा साहित्य इतना विशाल है कि इसके समुचित सम्पादन और ने अपने भगीरथ यत्न-प्रयल किए हैं। दीर्घ निकाय के ब्रह्मजाल सुत्र प्रकाशन के लिए पचास वर्षों से कम समय की अपेक्षा नहीं होगी। में एक स्थान पर कथाओं के अनेक भेद किए हैं - (१) राजकथा जैन साहित्य में लोक-कथाओं का खुलकर स्वागत हुआ। भारतीय (२) चोरकथा (३) महामात्यकथा (४) सेन कथा (५) भयकथा लोक-मानस पर मध्यकालीन साहित्य की जो छाप आज अभी तक (६) युद्धकथा (७) अन्नकथा (८) पानकथा (९) वस्त्रकथा सुरक्षित है उसमें जैन कहानी साहित्य का पर्याप्त अंश है। सदयवच्छ (१०) शयनकथा (११) मालाकथा (१२) गंधकथा (१३) ज्ञातिकथा सावलिंग की कहानी का जायसी ने 'पद्मावत' में और उससे भी पहले (१४) यान कथा (१५) ग्रामकथा (१६) निगमकथा (१७) नगरकथा अब्दुल रहमान ने संदेशरासक में उल्लेख किया है। यह कहानी बिहार (१८) जनपदकथा (१९) स्त्रीकथा (२०) पुरुषकथा (२१) शूरकथा से राजस्थान और विंध्य प्रदेश के गाँव-गाँव में जनता के कंठ-कंठ (२२) विशिखा कथा (बाजारू गणे) (२३) कुंभस्थान कथा (पनघट में बसी है। कितने ही ग्रंथों के रूप में भी वह जैन साहित्य का अंग की कहानियाँ) (२४) पूर्वप्रतकथा (गूजरों की कहानियाँ) (२५) निरर्थक कथा (२६) लोकाख्यायिका (२७) समुद्राख्यायिका। कथा के भेदों जैन कथा को कथाकारों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि कई का निरूपण करते हुए आगमों में अकथा, विकथा, कथा तीन भेद भाषाओं में प्रणयन कर एक ओर भाषा को समृद्ध किया है तो दूसरी किए गए हैं। उनमें कथा तो उपादेय हैं, शेष त्याज्य! उपादेयकथा ओर जनता की भावना को परिष्कृत-प्रतिष्ठित किया है। जनपदीय के विभिन्न रूपों का वर्गीकरण विषय, शैली, पात्र, एवं भाषा के बोलियों में भी जैन लेखकों ने कथासाहित्य को पर्याप्त मात्रा में आधार पर किया गया है। रचा-लिखा है। जैनाचार्यों ने इन कथाओं के माध्यम से गहन सैद्धान्तिक साधारणतया जैन कथाओं को अग्रांकित चार भागों में विभक्त तत्त्वों को सुगम बनाया है तथा श्रावकों एवं साधारण जनता ने इनके किया जा सकता है१२- (१) धर्म सम्बन्धी कथाएँ (२) अर्थ सम्बन्धी द्वारा अपनी सहज प्रवृत्तियों को विशुद्ध बनाने का सतत् प्रयल किया कथाएँ (३) काम सम्बन्धी कथाएँ (४) मोक्ष सम्बन्धी कथाएँ। इस है। जैन विद्वानों ने इन आख्यानों में मानवजीवन के कृष्ण और शुक्ल वर्गीकरण में भी मोक्षविषयक भावना सर्वत्र विद्यमान है। इसके अन्तर्गत पक्षों को उजागर किया है लेकिन आख्यान का समापन शुक्ल पक्ष विरक्ति, त्याग, तपस्या, पूजा, आदि धार्मिक चिंतन एवं कृत्य स्वयं की प्रधानता दिग्दर्शित कर आदर्शवाद को प्रतिष्ठित किया है। कथा ही सन्निहित हैं क्योंकि जैन कथाओं का लक्ष्य धर्म की महिमा को साहित्य की दृष्टि से जैन साहित्य बौद्ध साहित्य की अपेक्षा अधिक बताना तथा धर्मानुमोदित आचार का प्रचार करना है। प्रकारान्तर से सफल और समृद्ध है जैन कथाओं में भूत, वर्तमान दुःख सुख की जैनकथाओं को इस प्रकार से भी वर्गीकृत किया जा सकता है। व्याख्या या कारण निर्देश के रूप में आता है। वह गौण है। मुख्य यथा - (१) धार्मिक (२) ऐतिहासिक (३) सामाजिक (४) उपदेशात्मक है वर्तमान। जबकि बौद्ध जातकों में वर्तमान अमुख्य है। वहाँ बौधिसत्व (4) मनोरंजनात्मक (६) अलौकिक (७) नैतिक (८) पशु-पक्षी सम्बन्धी की स्थिति विगत काल में ही रहती है। इसमें अनेक रूपक कहानियाँ (९) गाथाएँ (१०) शाप-वरदान विषयक (११) व्यवसाय सम्बन्धी भी हैं। एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा। एक तालाब है। उसमें खिले (१२) विविध (१३) यात्रा सम्बन्धी (१४) गुरु शिष्य सम्बन्धी (१५) हुए कमल भरे हैं। मध्य में एक बड़ा कमल है। चार ओर से चार देवीदेवता सम्बन्धी (१६) शकुनापशकुन सम्बन्धी (१७) मंत्र-तंत्रादि मनुष्य आते हैं और वे उस बड़े कमल को हथियाना चाहते हैं। प्रयल सम्बन्धी (१८) बुद्धि परीक्षण सम्बन्धी (१९) विविध जातिवर्ग सम्बन्धी करते हैं परन्तु सफल नहीं होते। एक भिक्षु तालाब के किनारे से कुछ (२०) विशिष्ट न्याय विषयक (२१) काल्पनिक कथाएँ (२२) प्रकीर्णक। शब्द बोलकर उस बड़े कमल को प्राप्त कर लेता है। यह सूयगड (सूत्रकृतांग) आगम की रूपक-कहानी है। इस रूपक के द्वारा यह मा लेकिन मेरी दृष्टि से सम्पूर्ण भारतीय कथा साहित्य को चार समझाया गया है कि विषयभोग का त्यागी-साधु राजा-महाराजा आदि प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है. अनुर का संसार से उद्धार कर देता है। इस प्राचीन कथा साहित्य से. (१) नीतिकथा (Didatic tales) जिसका ऊपर वर्णन हुआ है, तत्त्वग्रहण कर आगे के लेखकों ने (२) धर्मकथा (Religious tales) संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में अनेक कहानियाँ रची हैं। अपभ्रंश (३) लोककथा (Folk or Popular tales) के 'पउमचरिउ' एवं 'भविसयत्तकहा' नामक ग्रंथ कहानी साहित्य की (४) रूपक कथा (Allegorical tales) अमूल्य निधि है। इनमें अनेक उपदेश प्रद कहानियाँ उपलब्ध होती स्थानांग सूत्र में कथा के तीन भेद बताए गए हैं - तिविहाकहा हैं। अधिक क्या कहा जाए, कथाओं के समूह के समूह जैन आचार्यों - अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा। - सूत्र १८९। इन भेदों के पश्चात् ने रच डाले हैं जिनके द्वारा जैनधर्म का प्रचार भी हुआ है और धार्मिक स्थानांग सूत्र २९२ में धर्मकथा के उपभेद भी बताए गए हैं। इसका सिद्धान्तों को बल भी मिला है। इन कथाओं में जीवन के उदात्त प्रमुख कारण यह है कि अर्थ-कथा और कामकथा संसार विवर्द्धक एवं शाश्वत सत्यों का निरूपण हुआ है। सांसारिक वैभव-विलास से होने के कारण जैन आचार्यों को उसका वर्ण अभिप्रेत ही नहीं था। विरक्ति में जैन कथाएँ प्रयोजनासद्ध हेतु का काम करती हैं। उनकी प्रमुख रुचि धर्मकथा की ओर ही थी। इसलिए उन्होंने स्थानाग सून श्रीमद् जयंतसेनसूरि अभिनंदन अंथ/वाचना भोगी बन कर मानवी, पाता कष्ट महान । जयन्तसेन तन बल धन, तीनों खोवत जान । www.jainelibrary.org: Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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