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________________ आचार्यश्री के रत्नत्रय कुशलता के साथ उनके पावन चरणों में अनन्तानन्त नमोऽस्तु । _श्री चारुकीर्ति स्वामी जी श्री जैनमठ, श्रवणबेलगोल, कर्नाटक ॐ आचार्यरत्न श्री देशभूषण दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य हैं । दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में परम्परा से शिखोपवीत आदि हिन्दू धर्म संस्कारों का पालन-धारण चला आ रहा है। इस कारण हिन्दू जाति एवं धर्म के मार्ग से इनका निकटवर्ती सम्बन्ध रहा है । श्री देशभूषण आचार्य जी द्वारा जैनमतावलम्बी महानुभावों में हिन्दू धर्म के प्रति आस्था तथा अनन्यता का प्रचार-प्रसार हो, एतदर्थ हम सहर्ष आपके आयुष्य एवं सर्वविध कल्याण की नारायणाशंसा करते हैं। -स्वामी नन्दनन्दनानन्द सरस्वती भूतपूर्व संसद् सदस्य एवं कार्यवाहक अध्यक्ष, अ०भा० रामराज्य परिषद्, वाराणसी (उ०प्र०) 卐 जैन आचार्यों की परम्परा में महाराजश्री का स्थान बहुत ऊँचा है और सदा याद किया जाता रहेगा। उनके द्वारा दीक्षित अनेक मुनि आज उच्चकोटि प्राप्त कर चुके हैं। उनके संघ की प्रतिष्ठा भी किसी से छिपी नहीं है। ऐसे महापुरुष के अभिनन्दन ग्रन्थ से समाज-चेतना का बड़ा भारी कार्य होगा। महाराजश्री के दर्शनों का दिल्लो एवं जयपुर कई स्थानों पर मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। सीधी सरल भाषा में धर्म के गूढ़ रहस्यों पर उनके प्रवचन सामान्य नर-नारी के लिए भी ग्राह्य होते हैं। मुझे पूरो आशा है कि यह अभिनन्दन ग्रन्थ धर्म, दर्शन, साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में एक सीमा चिह्न बन सकेगा। -अक्षयकुमार जैन के आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज न केवल तपोनिधि हैं, बल्कि तप के अजस्र स्रोत भी हैं। इन्होंने आज के कितने ही साधु-साध्वियों को दीक्षा प्रदान कर तपस्या के पथ पर आरोहित किया है एवं अपनी हित-मित वाणी से जन-जन के मन में सदाचार और धर्म के प्रति आस्था जगाई है। मेरे पूज्य पिताजी एवं अम्माजी महाराजश्री की सेवा में दीर्घकाल से तत्पर रहे हैं और तभी से हम लोग भी उनके भक्त हैं । इतनी दीर्घावधि तक दिगम्बर तपस्वी का जोवन अपने आप में अत्यन्त उल्लेखनीय एवं श्रद्धास्पद है। महाराजश्री ने समस्त भारतवर्ष में पदयात्रा के द्वारा जन-जन में धर्म के प्रति आस्था जगाकर समाज का कल्याण किया है। दिगम्बरी धर्मगुरुओं के निर्बाध विचरण के लिये प्रतिबन्धात्मक आज्ञाओं का आपने जिस - आस्था का अर्घ्य ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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