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कुट्ट, कुट्टक, कुट्टाकार ये समस्त शब्द कुट्ट से बने हैं जिसका आशय कूटना या कुचलना है। महावीराचार्य ने एक स्थान पर बतलाया है कि विद्वानों के अनुसार 'कुट्टीकार' शब्द 'प्रक्षेपक' का ही दूसरा नाम है, जिसका अर्थ छोटे-छोटे भागों में विभाजित करना है ।।
आर्यभट्ट ने एकघात अनिर्णीत समीकरण ax+c=by को हल करने के लिए इस प्रकार नियम दिया है
"अधिक शेष वाले भाजक को कम शेष वाले भाजक से विभाजित करो। प्राप्त शेष से फिर कम शेष वाले भाजक को विभाजित करो। इस तरह अन्त में जो शेष बचे उसको मन से चुनी हुई ऐसी संख्या द्वारा गुणा करो कि गुणनफल में यदि समीकरण में स्थिरांक जोड़ा जावे (जबकि भागफलों की संख्या सम हो) अथवा घटाया जावे (जब कि भागफलों की संख्या विषम हो), तो प्राप्त राशि अन्तिम भाजक द्वारा पूर्णतः विभाजित हो जाये । इसके बाद भजनफलों को एक-दूसरे के नीचे एक स्तम्भ में लिखो। उसके नीचे मन से चुनी हुई संख्या तथा सबसे नीचे अन्तिम क्रिया में प्राप्त भजनफल लिखो। इस स्तम्भ में अन्तिम संख्या से ठीक एक ऊपर की संख्या को उसके ऊपर की संख्या से गुणा करके नीचे की संख्या जोड़ देते हैं । (और अन्तिम संख्या को मिटा देते हैं ।)
इस क्रिया की पुनरावृत्ति तब तक होती है जब तक कि स्तम्भ में केवल दो पद नहीं रह जाते । यही पद नीचे से क्रमशः x और y के मान होते हैं।
यह क्रिया निम्न उदाहरण से स्पष्ट है.उदाहरण-137x+10=60y
60) 137 (2
120
अतः भजनफलों का स्तम्भ इस प्रकार बना।
17) 60 (3
51 9) 17 (।
9 8)9 (1 __8
पहले भजनफल को छोड़ने पर भजनफलों की संख्या 3 रह जाती है । अतः हमको ऐसी संख्या चुननी है कि जिसको अन्तिम शेष अर्थात् एक से गुणा करने पर, तथा गुणनफल में से 10 घटाने पर, शेषफल अन्तिम से एक पहले शेष अर्थात् 8 से पूर्णतः विभाजित हो जावे । माना, वह संख्या 18 चुनी, ताकि 1X18-10-8X1 अब प्रथम स्तम्भ में नीचे 8 और फिर उसके नीचे एक लिखा।
अब 18 को उससे ऊपर की संख्या अर्थात् एक से गुणा किया और गुणनफल में 18 से नीचे की संख्या एक को जोड़ा । इस प्रकार 18X1+1=19, दूसरे स्तम्भ की नीचे से दूसरी संख्या हो गई। दूसरे स्तम्भ की शेष संख्या वही होती है, जो प्रथम स्तम्भ की नीचे से तीन संख्याओं को छोड़कर है । यही क्रिया दोहराने पर तीसरे, चौथे और पांचवें स्तम्भ की नीचे से दूसरी संख्याएं क्रमा :
1931+182337,37x3+19=130 और 130X2+37=297 हई । प्रत्येक स्तम्भ की अन्य संख्याओं को लिखने पर निम्न तालिका बनी
22297
130 130 1 37 37 19 19 18
1. बणितसारसंग्रह, अध्याय 6. गाथा 791 2. अधिकाग्रभागहारं छिद्यादूनाग्रभागहरिणा
मेषपरस्परभक्तं मतिगुणमग्रन्तरे क्षिप्त अथउपरि गणितमंत्ययुगूनाग्रच्छेद भाजिते शेष अधिकाग्रच्छेदगुण द्विच्छेद्राग्रमधिकाग्रयुतम-मार्यभट्टीय, गाथा 32-33
आचार्यरत्न श्री देशभषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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