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________________ विशाल विजय जी घोघा तीर्थ भीलडिया तीर्थ मुंडस्थल महातीर्थ (मूंगथला)' राधनपुर (एक ऐतिहासिक परिचय) आरासणतीर्थ (कुंभारियाजीतीर्थ) सेरिया, भोयणी, पानसर अने बीजा तीर्थो सांडेराव (एक ऐतिहासिक परिचय) ६ १९५८ १६६० १९६० १९६० १९६१ १६६३ २. अभिलेख : जैन मुनियों के तीर्थ वर्णन के ग्रन्थों में कभी-कभी अभिलेखों का उल्लेख हो ही जाता है साथ ही अभिलेखों पर स्वतंत्र ग्रन्थ भी उन्होंने दिये हैं। प्राचीन जैन लेख संग्रह', भाग १-२ जिनविजयी जी १६२१ प्राचीन लेख संग्रह भाग १ विद्याविजयी जी १९२६ (सम्पादक) आबू भाग-२ (अर्बुद प्राचीन जैन लेख सन्दोह) जयन्त विजय जी १९३८ आबू भाग-५ (अबुंदाचल प्रदक्षिणा जैन लेख सन्दोह) १० १६४६ राधनपुर प्रतिमा लेख सन्दोह" विशाल विजय जी १६६० ३. प्रकीर्ण-साहित्य : यहां प्रभावकों के चरित्रों नृत्य संग्रह एवं इतिहास विषयक पुस्तकों का उल्लेख किया गया है। १. भावनगर से २१ कि० मी० दूर यह स्थल बलमीपुर राज्यकाल में महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह था। २. उत्तर गुजरात में अवस्थित इस स्थान का प्राचीन नाम भीमपल्ली था। भीमपल्ली का राजा अर्णोराज वाघेला राजा कुमारपाल का समकालीन था। सदर, पृ०२१ ३. आबु पहाड़ के दक्षिणी भाग में यह स्थान है इस पुस्तक में आठ चित्र हैं, जिनमें एक अभिलेख का है। ४. आबू के दक्षिण-पूर्व में आरासाण के पहाड़ हैं, इसमें आरंभ में आठ चित्र हैं जो शिल्प-स्थापत्य के अध्ययन के लिए उपयोगी हैं, परिशिष्ट में १६१ प्रतिमा लेख दिये गये हैं जो तत्कालीन राजनैतिक इतिहास के लिए उपयोगी, हैं, पुस्तक काफी अच्छी है। ५. अहमदाबाद के नजदीक के छ: स्थल (तीन के अलावा वामज, उपरियाणा और वडगाम) का संक्षिप्त परिचय है। ६. राजस्थान के जोधपुर जिले में है। ७. समय की दृष्टि से पुराना से पुराना लेख विक्रमी संवत् ६६६ का हस्त कुण्डी में नये में नया वि० स० १६०३ का अहमदाबाद का है। इस प्रकार विक्रम की दसवीं सदी से बीसवीं शताब्दी तक के (एक हजार वर्ष का) लगभग ५५७ लेखों का संग्रह इन दो भागों में है। ८. मुनि जिनविजय जी गुजरात के महान् पुरातत्त्वविद थे, गुजरात के आलेखन में उनका कार्य चिरस्मरणीय रहेगा। उनके सर्जन-सम्पादन कार्य का क्षेत्र काफी विस्तृत है। साधुजीवनकाल के उनके सर्जनात्मक ग्रन्थ उसके बाद के साधुचरित जीवन के प्रमुख सम्पादित एवं संशोधित ग्रन्थों ने गुजरात के इतिहास निर्माण की चिनाई में विशिष्ट योगदान दिया है। 'शत्रुजय तीर्थोद्धारप्रबन्ध' (१९१७), 'कुमारपाल प्रतिबोध' (१९२०), 'प्रभावक चरित' (१९३१), 'प्रबन्ध चिन्तामणि' (१९३३), 'विविधतीर्थकल्प', (१९३४) 'प्रबन्धकोश' (१९३५) 'पुरातनप्रबन्ध संग्रह (१९३६) आदि सम्पादन उनकी आजीवन विद्योपासना और अध्ययन शीलता का परिपाक है। ६. इस पुस्तक में ६६४ लेखों का समावेश किया गया है। मूल लेखों के नीचे टिप्पणी में प्राप्ति स्थान का उल्लेख है। तदुपरान्त अनवाद दिया गया है, पुस्तक के आरम्भ में लेखों की स्थान सहित अनुक्रमणिका है और परिशिष्ट में अध्ययनकर्ताओं को सुविधा हो सके, गच्छ, गोत्र, शाखा, गांव, देश, पर्वत, नदी, राजा, मंत्री, गृहस्थ, जाति आदि को अकारादि क्रम से दिया गया है। १०. उपयुक्त लेखक की इस पुस्तक में भी उपयुक्त पुस्तक की तरह मूल लेखों की टिप्पणी और फिर अनुवाद दिया गया है। कुल ६४५ लेख वि० सं० १०१७ से १९७७ तक के हैं। इन दोनों पुस्तकों में लेखक को गहनसूझ, संशोधन वृत्ति, और धैर्य प्रकट होता है। ११. मुनि जी ने आरम्भ में राघवपुर का परिचय दिया है और फिर ४८६ लेख अनुवाद सहित दिये गये हैं । पादटिप्पणी में प्रत्येक लेख के प्राप्ति स्थान का उल्लेख किया गया है परिशिष्ट में राधनपुर से सम्बन्धित रचनायें उद्धृत की गई हैं। जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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