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करता है । जैन धर्म के सिद्धान्त पूर्वाग्रह से सर्वथा मुक्त हैं । उसका स्याद्वादी सिद्धान्त विज्ञान के धरातल पर खरा उतरता है । स्याद्वाद एक यौगिक शब्द है । यह स्याद् और वाद दो शब्दों के योग से बना है । स्याद् कथंचित् का पर्यायवाची संस्कृत भाषा का एक अव्यय है । इसका अर्थ है—किसी प्रकार से किसी अपेक्षा से । वस्तु तत्त्व निर्णय में जो वाद अपेक्षा की प्रधानता पर आधारित है, वह स्याद्वाद है । जैन दर्शन का यह सिद्धान्त वैज्ञानिक जगत् में सापेक्ष वाद से पूर्णतः साम्य रखता है । सापेक्षवाद के आविष्कर्ता सुप्रसिद्ध पाश्चात्य वैज्ञानिक प्रो० अलबर्ट आइंस्टीन है। सापेक्षवाद का वही अर्थ है जो स्यादवाद का है अपेक्षया सहितं सापेक्षं अर्थात अपेक्षा करके सहित जो है वह सापेक्ष है । अपेक्षा से जो कुछ कहा जाये उसे सापेक्षवाद कहा जाता है । जैन धर्म में सृष्टि के मूलभूत सिद्धान्तों को सापेक्ष बताया गया है । प्राकृतिक स्थितियों के विषय में वैज्ञानिक आइंस्टीन भी अपेक्षा प्रधान बात कहते हैं । सापेक्षवाद के प्रथम सूत्र के अनुसार 'प्रकृति ऐसी है कि किसी भी प्रयोग के द्वारा चाहे वह कैसा भी क्यों न हो वास्तविक गति का निर्णय असम्भव ही है।' इस सूत्र से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक पदार्थ गतिशील भी है । और स्थिर भी है। यही बात स्याद्वादी कहते हैं कि परमाणु नित्य शाश्वत भी है और अनित्य भी, संसार शाश्वत भी है । द्रव्यत्व की अपेक्षा से वह नित्य है । वर्ण पर्याय, बाह्य स्वरूप आदि की अपेक्षा से अनित्य है, प्रतिक्षण परिवर्तन शील है' यही बात आत्मा के विषय में स्पष्ट है।'
स्याद्वाद अस्ति, नास्ति पर बल देता है । सापेक्षवाद भी है और नहीं ( अस्ति नास्ति ) की बात करता है । जिस पदार्थ के विषय में यह कहा जाता है कि यह एक सौ चौउन पौण्ड का है । सापेक्षवाद कहता है कि यह है भी और नहीं भी । क्योंकि भूमध्य रेखा पर यह एक सौ चोउन पौण्ड है पर दक्षिणी या उत्तरी ध्रुव पर यह एक सौ पचपन पौण्ड है । गति तथा स्थिति आदि को लेकर वह और भी बदलता रहता है ।' अनन्तधर्मात्मकं सत् अर्थात् वस्तु अनन्त धर्मात्मक है अर्थात् वस्तु अनन्त गुण व विशेषताओं को धारण करती है । जब किसी वस्तु के विषय में कुछ भी कहा जाता है तो साधारणतः एक धर्म को प्रमुख व अन्य धर्म को गौण कर दिया जाता है। इस प्रकार का सत्य आपेक्षिक होता है । अन्य अपेक्षाओं से वही वस्तु अन्य प्रकार की भी होती है । उदाहरणार्थ निम्बू के सामने नारंगी बड़ी होती है किन्तु पदार्थ धर्म की अपेक्षा से नारंगी में जैसा बड़ापन है वैसा ही छोटापन भी किन्तु वह प्रकट तब होता है जब खरबूजे के साथ उसकी तुलना की जाती है । गुरुत्व व लघुत्व जो हमारे व्यवहार में आते हैं । वे मात्र व्यावहारिक या आपेक्षिक है। वास्तविक ( अन्त्य ) गुरुत्व तो लोकव्यापी महास्कन्ध में है और अन्त्य लघुत्व परमाणु में ।
सापेक्षवाद और स्याद्वाद की इस समानता से यह स्पष्ट होता है कि जैन धर्म विज्ञान एवं जीवन-व्यवहार में उतरने वाला
वास्तविक धर्म है ।
जैन धर्म मानव समाज को अधिकाधिक सुखी बनाने हेतु अपरिग्रह पर बल देता है । अपरिग्रह का अर्थ है कि पदार्थ के प्रति आसक्ति का न होना । वस्तुतः ममत्व या मूर्च्छाभाव से संग्रह करना परिग्रह कहलाता है। आसक्ति के कारण ही मानव अधिकाधिक संग्रह करता है परिग्रह को व्यक्ति सुख का साधन समझता है और उसमें आसक्त होकर वह सदा दुःखी रहता है । जवकि कामना रहित व्यक्ति ही सुखी रह सकता है। क्योंकि मानव की इच्छायें आकाश के सदृश असीम है । और पदार्थ ससीम 15 जैन धर्म का यह अपरिग्रहवाद समाजवाद का आधार माना है। यह सहज में ही कहा जा सकता है कि साम्यवादी या समाजवादी विचारधारा का मूल स्रोत सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स की अपेक्षा जैन धर्म के चौबीसवें तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर से प्रारम्भ होता है। इस अपरिग्रहवाद या समाजवाद से राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं को समाप्त किया जा सकता है। निश्चय ही जैन धर्म का यह अपरिवहबाद आधुनिक युग की अर्थवैषम्य जनित सामाजिक समस्याओं का सुन्दर समाधान है। वास्तव में जैन धर्म के सिद्धान्त वैज्ञानिक शैली में निरूपित किये गये हैं ।
?. "Nature is such that it is impossible to determine absobute motion by any experiment what ever".
-Mysterious Uuiverse, o s
२. भगवतीशतक, १४-३४
३. भगवतीशतक, ७-२
४. Cosmology Old and New, पृ० २०५
५. "सौक्ष्म्यं द्विविधं अन्त्यमापेक्षिकं च । तत्र अन्त्यं परमाणो आपेक्षिकं यथा नालिकेरापेक्षया आम्रस्य । स्थौल्यमपि द्विविधं तत्र अन्त्यं अशेषलोकव्यापि महास्कन्धस्य आपेक्षिकं यथा आम्रापेक्षयानालिकेरस्य ।" श्रीजैन सिद्धान्तदी पिकाप्रकाश, सूत्र ११
६. "मुच्छा परिग्गहो बुत्तो।" दशवेकालिकसूत्र, ६-१६
७.
• "कामे कमाही कमियं खुदुक्खं ।" दशवेकालिकसूत्र २-५
I
८. इच्छा हु आगास समा अणंहिषा ।” उत्तराध्ययनसूत्र अध्याय ६, गाथा ४८
जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ
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