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३६. मैं महान् हूँ !
३८. आवरण
अकिंचन हूँ, इसलिए मैं महान् हूँ !
कामना हीन हूँ, इसलिए मैं सुखी हूँ !
इन्द्रियां संयत हैं, इसलिए मैं स्वतन्त्र हूँ! आत्मद्रष्टा हूँ, इसलिए मैं अभय हूँ !
मैं आश्चर्य से देखता रहा ! सूर्य का अभिनन्दन उसने किया जो तिमिर को अपने में छिपाए हुए था। सत् का अभिनन्दन उसने किया जो असत् को अपने में छिपाए हुए था। जन्म का अभिनन्दन उसने किया जो मृत्यु को अपने में छिपाए हुए था। स्मित का अभिनन्दन उसने किया जो अश्रुओं को अपने में छिपाए हुए था। मैं आश्चर्य से देख रहा हूँ ! तिमिर प्रकाश का कवच पहने हुए है। असत् सत् का कवच पहने हुए है। मृत्यु जन्म का कवच पहने हुए है। अश्रु स्मित का कवच पहने हुए है।
४०. चिन्तन और चिन्ता
चिन्तन क्या है ? जीवन दर्शन का प्रतिबिम्ब !
चिन्ता क्या है ?
विकृत मनोभावों का भय !
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्थ
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