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________________ १३. मैं कैसे मानूं ? सेठ ने कहा मुनिराज ! मैं कैसे मान"धन अनर्थ का मूल है इसलिए बुरा है" महाराज ! जब मैं निर्धन था तो कोई कदर न थी मैं संयमी था किन्तु फिर भी बेईमान कहा जाता था १८. समन्वय बादल चले जा रहे थे बरसने अनन्त ने उनका सम्मान किया ! बादल चले आ रहे थे बरस कर अनन्त ने उन्हें छाती से चिपका लिया !! महाराज ! आज मैं धनी हं लोग चरण चूमते हैं असंयमी हूँ फिर भी लोग महान् कहते हैं अब बताओ मैं कैसे मानूं-धन बुरा है ? १९. सापेक्षता वह ठंडक किस काम की जो पानी को पत्थर बना दे। वह गर्मी भी क्या बुरी है। जो पत्थर को भी पानी बना दे ।। १४. मिलन और विरह मिलन में सुख है विरह में वेदना ! मानव मिलन-प्रमी है और विरह-विद्वेषी ! पर उसे क्या मालूम विरह के बिना मिलन का सुख कैसा? १५. काटना और साधना काटना सहज है साधना कठिन कैची अकेली चलती है क्योंकि उसका काम है सीधा 'काटना' सूई धागे के बिना चल नहीं सकती क्योंकि 'सीने' में अनेक घुमाव जो होते हैं !! २०. तप का चमत्कार भला लघु बने बिना भी कोई ऊँचा उठ सकता है ? जल बादलों से भरकर भारी हुआ कि नीचे चला गया ! पात्र में तपकर लघु हुआ कि वाष्प बन कर अनन्त में लीन हो गया तपे बिना कौन लघु हो सकता है ? और लघु बने बिना कौन अनन्त को छू सकता है ? २१. गतिरोध सिगनल झुका, रेल चलती गई। वह स्तब्ध रहा, रेल रुक गई। गतिरोध वहां होता है जहां स्तब्धता होती है । २२. प्रकाश और तिमिर १६. नेपथ्य में मैं ढूंढ रहा था भगवान को भगवान् खोज रहे थे मुझे ! अकस्मात् हम दोनों मिल गए न तो वे झुके और न मैं झुका न वे मुझसे बड़े थे और न मैं उनसे लघु था एक पर्दा मुझे उनसे विभक्त किए था वह हटा और मैं भगवान् बन गया ! १७. अस्तित्वहीन केवल गति ही नहीं स्थिति भी चाहिए पवन में गति है पर स्थिति नहीं वह पल में होता है ठण्डा और पल में गरम पल-पल में सुरभित और दुर्गन्धित भी! लगता है उसका कोई अपना अस्तित्व ही नहीं ! सूर्य ! तुम्हारे पास सब कुछ है आवरण नहीं ! तिमिर अपने अंचल में समूचे विश्व को छिपा लेता है ! तम में साम्य है, एकत्व है रवि, तुम यह नहीं कर पाते । तुम्हारे रश्मिजाल में विश्लेषण है, भेद है! शान्ति और मौन को लेकर आता है तिमिर सहस्ररश्मि ! तुम लाते हो क्रान्ति और तुमुल ! सृजन-संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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