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________________ णमोकार-मन्त्र-कल्प -मामब-कल्याण का सोपान समीक्षक : पं० संदीप कुमार जैन णमोकार-मन्त्र-कल्प की एक प्राचीन हस्तलिखित प्रति स्व० श्री मनोहर लाल जैन जौहरी, पहाड़ी धीरज, दिल्ली ने आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज को अवलोकनार्थ दी थी। आचार्य श्री का णमोकार मन्त्र से जन्मजात लगाव है । अतः प्रस्तुत ग्रन्थ की पांडुलिपि का अध्ययन करने के उपरान्त आचार्य श्री ने महामन्त्र की प्रभावना एवं श्रावक समुदाय के कल्याण के निमित्त इस ग्रंथ के सम्पादन का निर्णय ले लिया। प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रंथ वास्तव में णमोकार-मन्त्र सम्बन्धी अनेक स्तोत्रों, यन्त्र-मन्त्रों का अद्भुत संग्रह है । संकलनकर्ता ने संकोचवश अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है। किन्तु प्रतीत होता है कि ग्रन्थ का संकलनकर्ता मूलसंघ के यशस्वी मुनि श्री पद्मनन्दि की परम्परा में से था। जैन धर्मानुयायियों का विश्वास है कि णमोकार-मन्त्र में ऐसी शक्ति निहित है जिससे मनुष्य के समस्त पाप और अनिष्ट कर्म सदासदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। इस मन्त्र के श्रद्धापूर्वक स्मरण व जाप से मनोवांछित पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में आचार्य श्री उमास्वाति कृत पंच नमस्कारस्तोत्रम में कहा गया है इन्दुदिवाकरतया रविरिन्दुरुप : पातालम्बरमिला सुरलोक एव । कि जल्पितेन बहुना भुवनत्रयेऽपि यन्नाम तन्न विषमं समं च न स्याम ॥ (णमोकार-मन्त्र-कल्प पृ० २६) इस मन्त्रराज के प्रभाव से इच्छा करने पर चन्द्रमा सूर्यरूप में, सूर्य चन्द्ररूप में, पाताल आकाश रूप में, पृथ्वी स्वर्गरूप में परिणत हो सकते हैं । अधिक कहने से क्या? तीनों लोक में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो इस मन्त्रराज के साधक के लिए सम चाहने पर सम और विषम चाहने पर विषम न हो जाए। जैन समाज में आचार्यरत्न श्री देशभूषण एक सिद्ध पुरुष के रूप में पूज्य हैं। भारतवर्ष के नगर-नगर, ग्राम-ग्राम में उनकी अलौकिक साधना एवं सिद्धियों के विषय में प्रायः चर्चा होती रहती है। किन्तु आचार्य श्री की प्रेरणा का मूल उत्स णमोकार महामन्त्र है। वह महामन्त्र की निरन्तर समाराधना करते हैं । उन्हीं के शब्दों में अहो पंचनमस्कारः कोऽप्युदारो जगत्सु यः। सम्पदोऽष्टौ स्वयं धत्तं वत्त ऽनन्ताः स्तुतः स ताः ॥२॥ तीनों लोकों में अतिशय उदार पंचनमस्कारमन्त्र आश्चर्यजनक है। जो स्वयं तो अष्टसिद्धियों को ही धारण करता है किन्तु स्मरण किये जाने पर वह अनन्तसिद्धियों को देता है। बत्त'ऽनुकूल एवान्यो भुक्तिमात्रमपि प्रभुः । एष पंचनमस्कारः प्रातिलोम्येऽपि मुक्तिदः ॥३।। संसार में सामर्थ्यशील अन्य व्यक्ति (राजा, महाराजा) अनुकूल होने पर ही भुक्ति (भोग) मात्र देते हैं किन्तु यह पंच नमस्कार मंत्र ही ऐसा है जिसे उल्टा पढ़ने पर भी मुक्ति प्राप्त होती है। णमोकार-मन्त्र में कुल पांच पद और पैतीस अक्षर हैं । किन्तु इसके संक्षेपीकरण से कई अन्य मन्त्र भी बन जाते हैं। यथापैतीस अक्षरों का मन्त्र—णमो अरिहंताण, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं । आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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