SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौदह गुणस्थान चर्चा कोष -गृहस्थियों को दैनिक चर्या का विश्लेषक समीक्षक : श्री सुनील कुमार प्रस्तुत प्राचीन, उपयोगी, अनुपलब्ध पुस्तक को अपने विहारकाल के अन्तर्गत पूज्य आचार्य श्री १०८ देशभूषण जी महाराज ने फर्रुखनगर (जिला गुड़गांव) के मन्दिर जी के शास्त्रभंडार से उपलब्ध कर इसका सरल, सुबोध हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है। जैन सिद्धांतों के जिज्ञासुओं तथा सैद्धान्तिक चर्चा-प्रेमियों के लिए यह ग्रंथ बहुत उपयोगी प्रमाणित है। गोमट्टसार, त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति, आचारसार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, समयसार आदि अनेक ग्रन्थों से सार खींचकर इस ग्रन्थ का निर्माण हुआ है, अतः स्वाध्याय प्रेमियों के लिए यह पुस्तक बहुत ही उपयोगी है। प्रस्तत ग्रन्थ अनेक प्रकार की चर्चाओं का सुगम कोष है। पूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज जिनवाणी के उद्धार तथा प्रचार में जो चिरस्मरणीय ठोस कार्य कर रहे हैं उसमें यह ग्रंथ भी अभूतपूर्व है। तपोनिधि, बहुभाषाविज्ञ आचार्य श्री देशभूषण जी भारतीय-साहित्य के गम्भीर अध्येता एवं मर्मज्ञ विद्वान् हैं । इस भविष्यद्रष्टा, अनासक्त कर्मयोगी ने राष्ट्र के रचनात्मक निर्माण और उत्तर एवं दक्षिण के रागात्मक सम्बन्धों को विकसित करने के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं के ग्रन्थों को हिन्दी में अनूदित किया है। आचार्य श्री देशभूषण जी ने जहाँ एक ओर प्राकृत एवं जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन एवं शोध को विश्वविद्यालय स्तर पर पर्याप्त आगे बढ़ाया वहीं लुप्त-विलुप्त एवं अनुपलब्ध जैन-साहित्य की खोजकर उसके उद्धार में अपना सारा जीवन लगा दिया। शील, स्वास्थ्य, सुदीप्त दीर्घ शरीर, निरभिमानता, कर्त्तव्यनिष्ठा, आत्मतोष, मधुरवाणी आदि सद्गुण उन्हें कुल-परम्परा से ही प्राप्त हैं। लोकप्रियता एवं सांस्कृतिक सुरुचि का उनमें अपूर्व संगम है। उनका जीवन वस्तुतः अनेक प्राचीन अप्रकाशित ग्रन्थों के जीर्णोद्धार का प्रामाणिक इतिहास है। एक दिगम्बर सन्त के रूप में जीवन व्यतीत करते हुए भी आप अत्यन्त उदार एवं सहृदय हैं। भारत एवं विश्व के सभी धर्मों के प्रति उनके मन में समादर भाव है। उन्होंने प्रायः सभी धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन किया है। इसीलिए उनकी पवित्र वाणी में सभी धर्मों के सिद्धान्तों एवं आदर्शों का समावेश पाया जाता है। आचार्य श्री द्वारा संगृहित प्रस्तुत पुस्तक में श्री चौदह गुण स्थान का वर्गीकरण गणित व सांख्यिकी दृष्टि से किया गया है। हमारा दैनिक जीवन अच्छी-बुरी क्रियाओं से संवलित है। क्रिया-कुशल श्रावक-श्राविका प्रशस्त क्रियाओं में स्वयं को नियोजित करते हैं तथा उपयोग और विवेक से यत्नपूर्वक गृहस्थ सांसारिक कार्यों को करते हुए दुष्ट व अप्रशस्त क्रियाओं से अपने को बचाते हैं। इस पुस्तक के प्रारम्भ में चौबीस ठाणा यन्त्र का विशेष भेद जैसे गति, इन्द्रियकाय, योग, वेद कषाय, ज्ञान संयम, दर्शन, लेश्याभण्य, सम्यक्त्व, संज्ञी, अहारक इत्यादि का सांख्यिकि विश्लेषण उद्धृत किया गया है। इसी प्रकार स्फुट विषयों जैसे द्रव्य, पदार्थ, प्रतिमा व्रत, अणुव्रत, अनुप्रेक्षा, भावना, तप, मूलभाव की विशेष व्याख्या की गयी है। इन विषयों का वर्गीकरण क्रम रूप में किया गया है जिसके अन्तर्गत मध्यलोक के ४५८ अकृत्रिम चैत्यालय, १६ मतिज्ञान के ३३६ भेद, शील के १८००० भेद, परमाद के ३७५०० भेद, गुण श्रेणी निर्जरा, स्थान ग्यारह प्रकार, गुणस्थानों में चढ़ने, उतरने, मरण करने का मार्ग, केवली समुदधात के समय, संख्या, अवस्था, गोत्र के प्रकार, एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक जीवों की उत्कृष्ट तथा जघन्य अवगाहना का कोठा के प्रकार का सुन्दर वर्णन मिलता है। इसी प्रकार चौबीस स्थानों का प्रमाण उत्तरोत्तर असंख्यात, असंख्यात स्थान बीतने पर अधिक-अधिक है उन चौबीस स्थानों के नाम, छह प्रकार के आहारों की व्याख्या, तीन प्रकार की सम्यग्दृष्टियों की संख्या का प्रमाण उत्तरोत्तर अधिक-अधिक प्रकार जैसे उपशम सम्यग्दृष्टि, क्षायक सम्यग्दृष्टि, क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि का वर्णन बताया गया है। चार गतियों में जब जीव जन्म लेता है तब कौन-सी गति में पहले समय में कौन-सी कषाय का उदय होता है ? चार गतियों में चार कषायों के काल का वर्णन है। जिन पूजा के भेद, छह प्रकार की पूजा जैसे नाम पूजा, स्थापना पूजा, द्रव्यपूजा. भावपूजा, क्षेत्र पूजा तथा काल पूजा का विस्तृत विवरण मिलता है। प्रस्तुत पुस्तक में पुण्य-पाप के ४६ भंग, पर्याय जीव की जघन्य अवगाहना दृष्टान्त सहित, लौकिक गणित के भेद, आचार के पांच भेद, सृजन-संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy