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"लोक में एक कथा प्रसिद्ध है।
किसी जंगल में कोई एक साधु आत्म-साधन में लगे हुए आसन लगाकर स्थिर बैठे थे। अर्थात् ध्यान में लीन थे। एक समय उनके पास एक चूहे ने आकर नमस्कार किया। उसका नमस्कार करने का कारण यह था कि उसको पूर्व जन्म के संस्कार अर्थात् वह पूर्व जन्म में धन के आर्तध्यान से मरकर चूहा बना था। उस साधु को देखकर उसके संस्कार जागृत हुए, इससे उसने महात्मा के पास आकर आनन्द से मस्तक झुका कर नमस्कार किया। इससे वह साधु उस चूहे पर प्रसन्न हुआ और बोला हे चूहे ! तेरे नमस्कार से मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है, मैं तुझे मनुष्य पर्याय में या देव पर्याय में जन्म लेने का उपाय बताऊं या सेठ साहूकार होने का उपाय बताऊं या बना दूं या सूर्य, चन्द्र, भुवनपति या देव आदि बना दूं । अगर तुझे मनुष्य बना दूं तो धर्म की आराधना का महासाधन प्राप्त होता है। उस साधु का वचन सुनकर चूहा कहने लगा कि हे महात्मा ! मुझे श्रीमंत बनने की इच्छा नहीं है। परन्तु एक अत्यन्त सुन्दर रूपवती चुहिया मिले ऐसा मुझे आशीर्वाद दें। तब महात्मा समझ गया कि अज्ञानी, मोही, बहिरात्मा जीव का यही स्वभाव होता है, इसलिए अपनी वासना के अनुसार ही ये आशीर्वाद मांगते हैं।” (योगामृत, पृ० २४१)
कहने की आवश्यकता नहीं कि 'योगामृत' के टीकाकार श्री देशभूषण जी महाराज की शैली सरल, सुबोध, रोचक एवं सरल है। आशा है, धर्मप्राण जनता में इसका अच्छा स्वागत होगा और जनसमुदाय इससे लाभ उठाकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होगा।
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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