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युवक के ऊपर बहुत क्रोध आया और उसने दीवार पर टंगी हुई तलवार से दोनों का सिर काट देने का विचार किया कि उसी समय उसकी दृष्टि उस श्लोक पर जा पड़ी। श्लोक देखते ही वह सचेत हो गवा । उसने सोचा 'सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् ।' अर्थात् जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए, अविवेक अनेक आपत्तियों का घर है।' वह तलवार खींचने से रुक गया। उसने ठीक बात जानने के लिए अपनी सेठानी को जगाया। सेठानी तुरन्त उठ बैठी। उसने देखा कि उसका पति आ गया है। प्रसन्नवा से वह फूली न समाई । तत्काल उसने अपने साथ सोते हुए उस युवक को जगाया और कहा 'पुत्र ! उठ, देख तेरे पिता जी आ गए हैं। इनके चरण छु । तू जब पाँच वर्ष का था तब ये परदेश में व्यापार करने गये थे । आज ११-१२ वर्ष पीछे लौट कर आये हैं।'
सेठ को यह जानकर कि सेठानी के साथ सोने वाला नवयुवक उसी का अपना पुत्र है, उसकी आशंका दूर हो गई। वह उस नीति के श्लोक पर बहुत प्रसन्न हुआ कि इस श्लोक ने मेरे वंश का नाश होने से बचा लिया। इस हर्ष के उपलक्ष्य में उस सेठ ने उस कवि को बुलाकर एक हजार रुपया और पारितोषिक दिया। सारांश यह है कि अविवेक और जल्दबाजी दुःख और अशान्ति का कारण बन जाते हैं । नीतिकार ने कहा है- 'सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं सुदीर्घकालेपि न याति विक्रियाम् ।' अर्थात् अच्छी तरह चिन्तवन करके जो कुछ कहा जाए और खूब विचार कर जो कार्य किया जाए, उस वचन और कार्य में दीर्घकाल तक भी कुछ बिगाड़ उत्पन्न नहीं होता। इस कारण प्रत्येक कार्य को सोच-समझ कर करना चाहिये।
अशान्ति का एक प्रमुख कारण क्रोध कषाय है। मनुष्य क्रोध में अंधा होकर अपनी विवेक बुद्धि को खो बैठता है । उसका मन बेकाबू हो जाता है । अतः मुख से गाली आदि अपशब्द बकने लगता है, और जिस पर उसे क्रोध आता है, उसे मार-पीट डालता है। अपना घात कर लेता है, आग लगा लेता है, मार काट कर डालता है। इस तरह बड़ी अशान्ति और क्लेश पैदा कर देता है।
एक काले सर्प के फण पर एक मक्खी आ बैठी। उसने फण हिलाया, मक्खी उड़ गई। फिर वहां आ बैठी। सांप ने फिर फण हिला कर उड़ा दिया, किन्तु मक्खी बार-बार उसके फण पर आकर बैठने लगीं। सर्प को मक्खी पर बहुत क्रोध आया। उसने मक्खी को मार डालना चाहा । सामने सड़क पर एक बैलगाड़ी जा रही थी। सर्प ने यह विचारा कि मैं गाड़ी के पहिये के नीचे अपना फण रख दूंगा जब गाड़ी का पहिया मक्खी पर आएगा, मैं अपना फण झट खींच लूगा । मक्खी पहिये के नीचे पिचक कर मर जायगी । सोच कर सर्प ने अपना फण गाड़ी के पहिये के नीचे रख दिया। तब मक्खी तो उड़ गई किन्तु सांप पिचक कर मर गया।
रीछ को जब क्रोध आता है तब उसके पास कोई न हो तो वह अपने आपको ही चबा डालता है। क्रोध की अशान्ति दूर करने का एक उपाय मौन धारण करना है। क्रोधी मनुष्य के सामने व्यक्ति यदि चुप रह जाए तो क्लेश कलह बढ़ने नहीं पाता, स्वयं शान्त हो जाता है।
एक स्त्री का पति बहुत क्रोधी था। वह प्रतिदिन अपनी पत्नी को डंडे से मार लगाता था। हजार गालियां देकर वह उसका मन क्षुब्ध कर देता था। अपने पति के इस व्यवहार से वह अत्यन्त दुखी थी। जब वह बहुत दुखी हुई तो एक दिन एक वृद्ध स्त्री के पास गई और उसको अपना सारा दुःख कह सुनाया । वह वृद्धा स्त्री अच्छी अनुभवी थी, घर-कलह के कारणों को खूब जानती थी। उसने एक बोतल में पानी भर कर थोड़ा-सा नमक डाल दिया तथा कुछ मन्त्र पढ़ने का बहाना किया। वह बोतल उसको दे दी और कहा कि जब तेरा पति आकर तुझे गालियां देनी शुरू करे, उस समय तू इस बोतल में से कुछ पानी निकाल कर अपने मुख में रख लिया कर । जब तक वह गालियां देता रहे तब तक इस पानी को मुख में ही रखे रहना। जब वह चुप हो जाए तब तू उस पानी को पी जाना । वह स्त्री प्रसन्न होकर उस बोतल के पानी को औषधि समझ कर घर ले गई।
उसका पति जब घर आया और घर आते ही उसने गालियां देना प्रारम्भ किया तभी उस स्त्री ने बोतल में से थोड़ा पानी निकाल कर अपने मुख में भर लिया। मुख में पानी भरा होने के कारण वह अपने पति की गालियों का कुछ भी उत्तर न दे पाई। इस कारण उसका पति थोड़ी देर गाली देकर अपने आप चुप हो गया। डंडा तो उसने हाथ में उठाया ही नहीं। मार न लगने से और थोड़ी गालियां मिलने से वह स्त्री बुढ़िया की औषधि पर बड़ी प्रसन्न हुई। उसका वह दिन शान्ति से व्यतीत हुआ।
दूसरे दिन उसके पति ने घर आते ही जब गाली देना शुरू किया, उसी समय उसकी स्त्री ने पहले दिन की तरह उस बोतल का पानी मुंह में भर लिया। पत्नी की ओर से कुछ भी उत्तेजना न पाने के कारण वह जल्दी चुप हो गया। मार-पीट तो कुछ हई ही नहीं। ऐसा प्रतिदिन होने लगा। इससे उस मनुष्य का क्रोध क्रमशः कम होता गया। उधर बोतल की दवा भी समाप्त हो गई। जब वह फिर बुढ़िया से दवा लेने गई तब बुढ़िया ने दवा का रहस्य बतलाया कि दवा अपने पति के क्रोध के समय मौन धारण करना ही है। स्त्री ने उस दिन से ऐसा ही किया। स्त्री के मौन रखने से उसके पति का क्रोधी स्वभाव भी बदल गया और उस घर में क्लेश, अशान्ति मिट गई, शान्ति स्थापित हो गई। इस तरह क्रोध कषाय और अज्ञान ही अशान्ति का कारण है। शान्ति के लिये इन दोनों को कम करते जाना चाहिये ।
अमृत-कण
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