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________________ महाराज ने अपनी सहज शांत मुद्रा में उत्तर देते हुए कहा-बात यह है, नारी बंधन के लिए कारण भी है और बन्धन के लिए कारण नहीं भी है । पुरुष को जन्म देने वाली नारी ही है । महापुरुषों को जन्म देने वाली नारी है। वह बाधा नहीं है। पति-पत्नी गाड़ी के दो पहियों के समान हैं, दोनों से मिलकर गाड़ी चलती है। यदि एक पहिया न हो तो गाड़ी नहीं चल सकती। एक पहिया नष्ट हो जाए तो मोक्ष-मार्ग नष्ट हो जाए। यह एक परम्परा है जो अनादि काल से चली आ रही है। महाराज ने नर-नारी को एक-दूसरे का पूरक स्वीकार करते हुए यह भी कहा–यदि नारी में नारी के गुण नहीं हैं और पुरुष में पुरुष के गुण नहीं हैं, तो वे दोनों ही बाधक हैं । इस प्रकार वह (नारी) बन्धन भी है, अबन्धन भी है। यदि पुरुष के जीवन में नारी का इतना महत्त्वपूर्ण स्थान है, तो फिर समाज में उसकी स्थिति कैसी होनी चाहिए ?-मैंने अपनी जिज्ञासा को महाराज के समक्ष अभिव्यक्त करते हुए कहा । अनेक परिवारों में नारी का मान-सम्मान उसके गुणों के कारण नहीं, अपितु उसके माता-पिता के द्वारा दिए गए दहेज के कारण होता है । दहेज आज के समाज की एक ऐसी बुराई है, एक ऐसा अभिशाप है, जिसके कारण आज अनेक कुलवधुएँ प्रताड़ित हो रही हैं । इस सामाजिक अभिशाप से हम कैसे मुक्त हो सकते हैं ? ___ बात यह है कि यह प्रश्न नारी के प्रति नहीं है । नारी का इसमें कोई दोष नहीं है। -महाराज ने कहा, और फिर अपने विचारों को वाणी प्रदान करते हुए वे बोले-इसमें माता-पिता, जन्म देने वालों का दोष है, जिन्होंने विवाह को भी एक व्यापार बना लिया है। लोग विवाह करते समय पैसा लेते हैं । दो-चार महीने लड़की को अपने पास रखते हैं। फिर कहते हैं और पैसा लाओ। लड़की का पिता अपनी बेटी की शादी के लिए अपना घर-बार तक बेच देता है । वह और पैसा कहां से लाए। कभी-कभी पैसे के लिए एक व्यक्ति कई-कई बार शादी करता है । इसका मूल कारण है-लोभ । इसमें कन्या का क्या दोष ? कई बार लड़की के माता-पिता भी अपनी बेटी का विवाह करते समय यह नहीं सोचते कि मेरी कन्या का क्या होगा? उसे सुख मिलेगा? नहीं मिलेगा? वे सोचते हैं कि लड़की के हाथ किसी प्रकार से पीले हो जाएँ । लड़की बेचारी तो गाय है । जहाँ भेजो, चली जाती है। हमने स्पष्ट लक्षित किया कि इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महाराज की वाणी किंचित् तीक्ष्ण, करुणा एवं व्यंग्यपूर्ण या। अपने हृदय की करुणा को अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने कहा-पहले जमाना था, जब लोग सोचते थे कि लड़का कैसा होना चाहिए ? लड़का पढ़ा-लिखा होना चाहिए । गुणवान् होना चाहिए। धर्म-कर्म वाला होना चाहिए। लड़के-लड़की का संयोग ऐसा हो कि जिससे दोनों को सुख-शांति मिले । लेकिन अब जमाना बदल गया है । आज लड़की यदि पढ़ी-लिखी है, बी० ए० पास है, तो वह सास-ससुर की सेवा नहीं करती। वह सोचती है, मैं पढ़ी-लिखी हूं। मैं इतना धन लेकर आई हूं। मैं न तो सास का पांव दबा सकती हूं, न साड़ी धो सकती है। आज सभी को गाड़ी चाहिए, टी० वी० चाहिए। तब यह बताओ कि वह लड़की इस संसार में क्या धर्म करेगी? कभी मदिर जाएगी? धर्म-शास्त्र पढ़ेगी? सेवा करेगी? दान करेगी? क्या करेगी? बताओ। क्योंकि आज घर में संस्कार ही नहीं है । घर वालों ने विचार ही नहीं किया कि हमारे घर में धार्मिक संस्कार होने चाहिएं, जैन धर्म के संस्कार न होने के कारण ही यह सब कुछ हो रहा है। अब कैसे कल्याण होगा? आज कितने लोग पूजा करते हैं ? मंदिर जाते हैं ? शास्त्र पढ़ते हैं ? इस बुराई को मिटाने के लिए, इस सामाजिक अभिशाप से मुक्त होने के लिए सत्साहित्य का प्रचार आवश्यक है। 9 महाराज ! आप अन्तर्यामी हैं। हम संसारी प्राणियों के भावों-अनुभावों को बनाने वाले हैं। आज का इंसान दुनियादारी और भौतिकता में उलझकर अपने आपको भूल गया है। मैं कौन हूं? कहां से आया हूँ? कहां जाना है? मेरे जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या है ?-इन प्रश्नों पर विचार करने के लिए आज के इंसान के पास समय ही नहीं है । मानव-जीवन के इन सभी सवालों का जवाब प्राप्त करने के लिए तथा वर्तमान जीवन की समस्याओं का समाधान पाने के लिए हम आपकी शरण में आए हैं। कल हमने नारी-जीवन की कुछ समस्याओं के बारे में चर्चा की थी, कि नारी सिद्धि-मार्ग की बाधा है अथवा प्रेरक शक्ति ? आज हम आपसे युवा वर्ग की कुछ समस्याओं के बारे में चर्चा करना चाहते हैं । आज हमारे स्कूलों में जो शिक्षा दी जाती है, उससे भौतिक विज्ञान का प्रकाश तो प्राप्त होता है, परन्तु आत्मिक ज्ञान की शीतलता प्राप्त नहीं होती। आप आधुनिक शिक्षा प्रणाली में किस प्रकार के परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव करते हैं ? प्रश्न बड़ा अच्छा है। बात यह है, भगवान महावीर की वाणी को और उनके परम्परा-मार्ग को जिन्होंने समझ लिया, उन्होंने अपने जीवन को सार्थक बना लिया। भगवान् महावीर ने यह विचार किया और कहा कि हे अज्ञानी प्राणियो ! तुम जिस सुख के मार्ग में 'भटक रहे हो, वह सुख का मार्ग नहीं, दुःख का मार्ग है । यदि सुखमय मार्ग चाहते हो तो हमारे पास आओ, सुनो। भगवान् महावीर ने कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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