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श्रृंखला' में विषय, रूप, आकार तथा सुरुचिपूर्ण मुद्रण की दृष्टि से अद्वितीय है और अपना एक पृथक् स्थान बनाने में समर्थ हो सका है। इससे अनेक विषयों के अनुसन्धित्सु लाभान्वित होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है । यह एक विद्वत्तापूर्ण प्रयत्न है।
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्र रूप से श्रावक समाज के सम्मुख प्रस्तुत करने की भावना से तैयार किया गया यह विशाल अभिनन्दन ग्रंथ जैन विद्याओं के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालता है। इसकी योजना बनाने और विगत पांच वर्षों से निरन्तर उसे सकुशल रूप में निभाने का श्रेय श्री सुमतप्रसाद जैन (महामंत्री एवं प्रबन्ध सम्पादक) को है, जिन्होंने इस कार्य को सुरुचिपूर्ण ढंग
और सात्विक धर्म-भावना से सम्पन्न कराया है। खण्डों का नाम निर्धारण, उनमें संकलित विषयों का चयन और उनसे सम्बन्धित उत्तम कोटि के विद्वानों की खोज श्री सुमतप्रसाद जैन और प्रधान सम्पादक डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त की सूझ-बूझ की परिचायक है। उनके साथ डॉ० मोहनचंद, प्रो० पी० सी० जैन, डॉ० दामोदर शास्त्री, श्री बिशनस्वरूप रुस्तगी, डॉ. पुष्पा गुप्ता, डॉ० महेन्द्र कुमार और श्री जगबीर कौशिक ने भी लगन और श्रम से काम किया है। सम्पादन ही ग्रन्थ का मूलाधार होता है। वह यहां सुस्पष्ट है। इसके साथ ही, ग्रन्थ के लगभग १८०० पृष्ठों का कलात्मक मुद्रण, निर्दोष प्रूफ रीडिंग, आचार्यश्री के चित्रों का चयन, पूरे ग्रन्थ का आकर्षक गैट-अप आदि का प्रबन्ध भी आसान नहीं था। अभिनन्दन ग्रंथ समिति के पदाधिकारियों एवं सम्पादन-मंडल ने यह भार जिस सहजता और धैर्य के साथ निभाया, वह उनकी असीम श्रद्धा का परिचायक है। श्री लालचन्द जैन एडवोकेट (अध्यक्ष), वैद्य श्री प्रेमचन्द जैन (मन्त्री), श्री सुभाषचन्द जैन बिजली वाले (मन्त्री)और श्री महेन्द्र कुमार जैन (कोषाध्यक्ष) की सेवाएं इस दृष्टि से सराहनीय हैं। इन सबको मेरा पूर्ण आशीर्वाद है । आचार्यरत्न श्री को त्रिवार नमोऽस्तु ।
-एलाचार्य मुनि विद्यानन्द
मास्था और चिन्तन
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