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________________ का निर्माण धर्मप्रभावना तथा लोककल्याण का जीता-जागता उदाहरण है। उपरोक्त मूर्तियों के निर्माण के पीछे महाराज श्री की 'भावना यह रही है कि विशाल जिनबिम्बों के निर्माण से लोगों में धर्म की जागृति होगी तथा वे स्व-कल्याण की ओर प्रवृत्त होंगे । आचार्य श्री का हीरक जयन्ती समारोह सन १९६४ ई० में कोथली कुप्पनवाड़ी में लगभग २५,००० भक्तों, श्रोताओं के समक्ष कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री निजलिंगप्पा की उपस्थिति में मनाया गया था। इसी प्रकार पांच वर्ष बाद सन् १६६६ ई. में उनका जन्मोत्सव बेलगांव में बड़े वैभव के साथ कर्नाटक के राजस्वमंत्री एच० व्ही० काजलगी की विशेष उपस्थिति में तथा कर्नाटक के उच्च न्यायालय बैंगलौर के जज श्री टी० के० तुकोल की अध्यक्षता में मनाया गया। इस सुअवसर पर प्रान्त के अनेक भाषाविद्, 'वितान् व प्रदेश शासन के अधिकारीगण उपस्थित थे। भारत की दिवगंत प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी सर्वधर्म समन्वय की अनोखी प्रतिमूर्ति थीं जो समभाव से ऐसे कार्यक्रमों को विशेष रुचिपूर्वक सम्पन्न कराने हेतु अग्रणी रहती थीं। १२ अप्रेल १६७२ को भारतीय संसद् भवन सचमुच धन्य हो गया जब भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव आयोजन की राष्ट्रीय समिति की बैठक के सुअवसर पर आचार्यरत्न देशभूषण जी स्वयं “संसद् भवन पहुंचे । बैठक की अध्यक्षता श्रीमती इन्दिरा गांधी कर रही थीं। आचार्य श्री अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं । साथ ही ग्रन्थ प्रणेता भी। उन्होंने मां भारती की सेवा करते हुए अनेक ग्रन्थों का 'प्रणयन किया है। वे जिनमन्दिरों, संस्थाओं, विद्यालयों, पुस्तकालयों, पाठशालाओं व औषधालयों के साक्षात् उद्धारक हैं। वे ऐसे पारस हैं जिनके सम्पर्क में आते ही संस्थाएं प्रगति के पथ पर चल पड़ती हैं । आचार्यश्री समन्वय के सेतु हैं उनके उपदेशों में सर्वधर्म समभाव के दर्शन होते हैं। वे स्फूर्त, जीवन्त विश्वधर्म के पोषकप्रचारक हैं। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह को जीवन में उतारते हुए उन्होंने लाखों व्यक्तियों का उद्धार किया है, व्यसनों से छुड़ाया है तथा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है । बालब्रह्मचारी, तपोनिष्ठ साधु, उपसर्ग विजेता, आध्यात्मिक सन्त का व्यक्तित्व इतना चुम्बकीय है कि देश-विदेश के सैकड़ों भक्त उनके दर्शनार्थ पहुंचते हैं । सन् १९६४ जनवरी में अमेरिकन प्रोफेसर डॉ० लूथर कोपलेन्ड दिल्ली में आचार्य श्री से मिलकर प्रभावित हुए व नियमादि ग्रहण किए। ऐसे ही अनेकों उदाहरण हैं । दिगम्बर जैन साधुओं में इस समय सर्वाधिक चचित व प्रभावशाली हैं आचार्य रत्न देशभूषण जी, उनके सुशिष्य एलाचार्य विद्यानन्द जी तया युवा आचार्य विद्यासागर जी। पूर्ण विश्वास है कि जिस प्रकार आचार्य विद्यानन्द जी, भट्टारक चारुकीर्ति जी तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी की विशेष रुचि से विगत २२ फरवरी १९८१ को भगवान् बाहुबलीजी के सहस्राब्द प्रतिष्ठापन महोत्सव पर श्रवणबेलगोल में जैनधर्म की जयपताका फहराई गई है उसी प्रकार भविष्य में भी जैनधर्म व संस्कृति का प्रसार उक्त साधुत्रयी द्वारा होता रहेगा। श्री जिनेन्द्र देव से प्रार्थना है कि वर्तमान युग के प्रधान दिगम्बर साधु आचार्य श्री देशमूषण शतायु होकर मानवधर्म का प्रचार करते हुए जैनधर्म को विशेष संरक्षण प्रदान करें ताकि अहिंसा धर्म फले-फूले । कालजयी व्यक्तित्व १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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