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________________ से बड़ा कोई माप रहा होगा, जो अब अज्ञात है । गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर एक पाषाण पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार' गोम्मटदेव के अभिषेकार्थ तीन मान दूध प्रतिदिन देने के लिए चार गद्याण का दान दिया। अतः यह समझा जा सकता है कि चार गद्याण का व्याज इतना होता था जिससे तीन मान अर्थात् लगभग छह सेर दूध प्रतिदिन खरीदा जा सकता था। किन्तु अन्य अभिलेख के अनुसार केति सेट्टि ने गोम्मट देव के नित्याभिषेक के लिए तीन गद्याण का दान दिया, जिसके ब्याज से प्रतिदिन तीन मान दूध लिया जा सके। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि उस समय की ब्याज की प्रतिशतता कोई निश्चित नहीं थी। क्योंकि उपरोक्त दोनों अभिलेख एक ही स्थान तथा एक ही वर्ष के हैं। तब भी जमा की गई राशि भिन्न-भिन्न है। ब्याज की प्रतिशतता के किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले तत्कालीन धन की इकाइयों को जान लेना आवश्यक है। एक गद्याण ६.१० के समान एक हण ५ १० , , एक वरह ३० पं० ,, एक होन या होग= २५ पै० ,,, एक हाग = ३ पै० , , इस प्रकार धन की इकाइयों का ज्ञान होने के पश्चात् अभिलेखों में आए ब्याज सम्बन्धी उल्लेखों को समझना सुगम हो जाता है। १२७५ ई० के अभिलेख' में वर्णन आता है कि आदियण्ण ने गोम्मटदेव के नित्याभिषेक के लिए चार गद्याण का दान दिया। इस रकम के एक होन' पर एक 'हाग' मासिक ब्याज की दर से एक 'बल्ल' दूध प्रतिदिन दिया जाए। अत: उस समय २५ पैसे पर ३ पैसे प्रतिमास ब्याज दिया जाता था। जिससे ब्याज की प्रतिशतता १२% निकलती है। जबकि १२०६ ई. अभिलेख के अनुसार नगर के व्यापारियों को यह आज्ञा दी गई कि वे सदैव आठ हण का टैक्स दिया करेंगे, जिससे एक हण ब्याज में आ सकता है अर्थात् ४० पैसे पर ५ पैसे ब्याज मिलने से यह सिद्ध होता है कि ब्याज की मात्रा १२ १/२% प्रतिमास थी। उपरोक्त दोनों अभिलेखों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ब्याज की मासिक प्रतिशतता १२% के आस-पास थी। प्राचीन योजनाए' : आधुनिक सन्दर्भ में :-आलोच्य अभिलेखों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि उस समय भी आज की भांति विभिन्न बैंकिंग योजनाएं प्रचलित थी, जिनमें निक्षेप, न्यास, औपानिधिक, अन्विहित, याचितक, शिल्पिन्यास, प्रतिन्यास आदि प्रमुख थी । ये अभिलेख उस समय की आर्थिक व्यवस्था का दिग्दर्शन कराते हैं जबकि क्रय-विक्रय विनिमय के माध्यम से होता था। जमाकर्ता कुछ धन या वस्तु जमा करवाकर उसके बदले ब्याज में नगद राशि न लेकर वस्तु ही लेता था। इसी प्रकार के उद्धरण, जो आलोच्य अभिलेखों में आए हैं, का विवेचन पहले किया जा चुका है। धन जमा करवाकर उसके ब्याज के रूप में दूध या पुष्प आदि लेना या भूमि देकर उससे अन्य अभीप्सित वस्तुओं की प्राप्ति करना । उपरोक्त प्राचीन योजनाओं में से श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में दो योजनाओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं, जिन्हें आधनिक सन्दर्भ में स्थायी बचत योजना (Fixed Deposit) और आवत्ति जमा योजना (Recurring Deposit Scheme) कहा जा सकता है। स्थायी बचत योजना की समानता प्राचीन काल में प्रचलित 'औपानिधिक' नामक योजना से कर सकते हैं। इसके उदाहरण के रूप में हम उन अभिलेखों को ले सकते हैं जिनमें कुछ धन जमा करवाकर उसके ब्याज के रूप में कोई वस्तु (दूध, पूजा सामग्री आदि) सदैव लेते रहते थे। आवत्ति जमा योजना के अन्तर्गत हम उन उदाहरणों को देख सकते हैं जिनमें कुछ धन की इकाई प्रतिमास प्रतिवर्ष जमा करवाई जाती थी। इन दो योजनाओं के अतिरिक्त अग्रिम ऋण योजना (Advance Loan scheme) की झलक भी इन अभिलेखों में मिलती है। इनसे ज्ञात होता हे कि सम्पत्ति जमा करने पर कुछ धन ऋण स्वरूप मिल जाता था और जब यह धन जमा न करवाया जा सका तो उसका भुगतान करने की इच्छा महाराजा चामराज औडेयर ने रहनदारों के समक्ष व्यक्त की। इस प्रकार उपरोक्त विवेचन के आधार पर निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत वर्ष में बैंकिंग प्रणाली ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी से पहले विद्यमान थी। आलोच्य काल में बैंक से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की पद्धतियां विद्यमान थीं तथा जमा राशि पर लगभग १२% ब्याज दिया जाता था। १. जै० शि० सं० भाग एक, ले० सं० १५ ॥ २. -वही-लेसँ०६७। ३. -वही-ले० सं० १२८ । . -वही-ले० सं०६१, १२, १३६ प्रादि । -वही-ले० सं ८४, १४० । आचार्षरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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