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________________ जैन मन्दिरों के शासकीय अधिकार भारतवर्ष का अल्पसंख्यक जैन समाज अपनी समर्पित निष्ठा एवं धर्माचरण के लिए इतिहास में विख्यात रहा है। जैनधर्मानुयायियों ने अपने आचरण एवं व्यवहार में एकरूपता का प्रदर्शन करके भारतीय समाज के सभी वर्गों का स्नेह अर्जित किया है । इतिहास में कुछ अपवाद भी होते हैं । कभी-कभी कट्टर शासक सत्ता में आ जाते हैं और वे राजसत्ता का प्रयोग अपने धर्म प्रचार के लिए करते हैं । इस प्रकार के धर्मान्ध शासन में अन्य धर्मावलम्बियों की धार्मिक मान्यताओं पर प्रहार भी किया जाता है । जैन आचार्यों एवं मुनियों ने सदा से प्राणीमात्र के कल्याण के लिए अपना पावन सन्देश दिया है। हृदय की गहराई से निकली हुई भावना समादर की दृष्टि से देखी जाती है। मुनि होरविजय सूरि एवं उनके शिष्यों के अनुरोध पर मुगल सम्राट् जलालुद्दीन अकबर ने मिती ७ जमादुलसानी सन् ६६२ हिजरी को एक फ़रमान जारी कर पजूषण ( पर्यंषण) के १२ दिनों में जीव हिंसा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मेवाड़ के शासक जैन मन्दिरों को अत्यन्त श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे । जैन समाज भी मन्दिरों की पवित्रता को बनाए रखने के लिए निश्चित आचार संहिता का कड़ाई से पालन करता था । इस दृष्टि से महाराजा श्री राजसिंह का आज्ञा-पत्र जैन समाज के लिए एक स्वर्णिम दस्तावेज है। कर्नल टॉड कृत 'राजस्थान' नामक ग्रन्थ में आज्ञा पत्र का अविकल पाठ इस प्रकार से है महाराणा श्री राजसिंह मेवाड़ के दश हजार ग्रामों के सरदार, मंत्री और पटेलों को आज्ञा देता है । सब अपने-अपने पद के अनुसार पढ़ें! १. श्री लालचन्द जैन, एडवोकेट २. जो जीव नर हो या मादा, वध होने के अभिप्राय से इनके स्थान से गुजरता है वह अमर हो जाता है ( अर्थात् उसका जीव बच जाता है । ) ४. प्राचीन काल से जैनियों के मन्दिर और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा (हद) में जीववध न करे यह उनका पुराना हक है । ३. राजद्रोही, लुटेरे और कारागृह से भागे हुए महापराधियों को जो जैनियों के उपासरे में जाकर शरण लें, राजकर्मचारी नहीं पकड़ेंगे । ५. फसल में कूळची (मुट्ठी), कराना की मुट्ठी, दान की हुई भूमि, धरती और अनेक नगरों में उनके बनाये हुए उपासरे कायम रहेंगे । यह फरमान ऋषि मनु की प्रार्थना करने पर जारी किया गया है दान किये गये हैं । नीमच और निम्बहीर के प्रत्येक परगने में भी परगनों में धान के कुल ४५ बीघे और मलेटी के ७५ बीघे । Jain Education International जिसको १५ बीघे धान की भूमि के और २५ मलेटी के हरएक जाति को इतनी ही पृथ्वी दी गई है अर्थात् तीनों इस फरमान के देखते ही पृथ्वी नाप दी जाय और दे दी जाय और कोई मनुष्य जतियों को दुःख नहीं दे, बल्कि उनके हकों की रक्षा करे। उस मनुष्य को धिक्कार है जो उनके हकों को उल्लंघन करता है। हिन्दू को गौ और मुदीर की कसम है ॥ ( आज्ञा से ) मुसलमान को सूअर और सम्वत् १७४९ महसूद ५ वीं, ईस्वी सन् १६६३ ॥ जैन इतिहास, कला और संस्कृति For Private & Personal Use Only शाह दयाल (मंत्री०) १७३ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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