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________________ मिलता। पिण्डिनियुक्ति टीका में इस सम्बन्ध में कुछ संकेत प्राप्त है । वहां एक लोकश्रुति का उल्लेख मिलता है कि यदि कन्या रजस्वला हो जाय तो जितने उसके रुधिर-बिन्दु गिरें, उतनी ही बार उसकी माता को नरकगामी होना पड़ता है।' स्मृतियों में विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख है, यथा-ब्राह्म, देव, ऋषि, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस तथः पैशाच।' इनमें से कुछ का मूल वैदिक काल में भी मिलता है । विभिन्न गृहसूत्रों में विवाह के भिन्न-भिन्न प्रकार बताये गये हैं। परन्तु ये आठ प्रकार प्रकारान्तर से सभी गृहसूत्रों में उल्लिखत हैं। ___आगम ग्रन्थों में विवाह के तीन प्रकार का वर्णन है। सजातीय विवाह की परम्परा का ही प्रावल्य था। विवाह में जातीय समानता के साथ ही आर्थिक स्थिति एवं व्यवसाय पर भी ध्यान दिया जाता था । समान आर्थिक स्थिति एवं समान व्यवसाय वालों के साथ ही विवाह-सम्बन्ध स्थापित किया जाता था। ऐसा करने में उनका मुख्य उद्देश्य बंश परम्परा की शुद्धि था। निम्न जाति एवं निम्न आर्थिक स्थिति बालों के साथ विवाह-सम्बन्ध स्थापित करने से कुल की प्रतिष्ठा के भंग होने का भय होता था। जातक कथाओं में भी इसी प्रकार के समान जाति, समान आर्थिक स्थिति एवं समान व्यवसाय वालों में विवाह का वर्णन मिलता है। बहु विवाह का भी प्रचलन था । ज्ञाताधर्म कथा में मेघकुमार द्वारा समान वय, समान रूप, समान गुण, और समान रामोचित पद वाली आठ कन्याओं से विवाह करने का उल्लेख है। विवाह की इस सामान्य परम्परा का कुछ अपवाद भी आगमों में वर्णित है। उदाहरण के लिये राजमंत्री तेयलिपुत्र ने एक सुनार की कन्या से विवाह किया था।' अन्तःकृद्दशा में क्षत्रिय गजस रुमाल का ब्राह्मण कन्या से तथा राजकुमार ब्रह्मदत्त का ब्राह्मण और वणिकों की कन्याओं से विवाह हआ था-ऐसा वर्णन प्राप्त है। उत्तराध्ययन टीका में राजा जितशत्र का चित्रकार कन्या से विवाह का वर्णन है। विजातीय विवाह के इस अपवाद के साथ ही विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच भी विवाह के कतिपय उदाहरण मिलते हैं। राजा उद्रायण जो तापसों का भक्त था उसका विवाह प्रभावती से बाथा जो श्रमणोपासिका थी।' श्रमणोपासिका सुभद्रा का विवाह बौद्धधर्मानुयायी से होने का प्रमाण मिलता है। विवाह-सम्बन्ध का निर्धारण परिवार के वयोवृद्ध आपसी परामर्श से करते थे। वृद्धों के निर्णय में वर का मौन रहना स्वीकृति मानी जाती थी। विवाह में वर अथवा उसके पिता द्वारा, कन्या के पिता अथवा उसके परिवार को शुल्क देने की परम्परा थी। ज्ञाताधर्मकथा में कनकरथ राजा के मंत्री तेमलि पुत्र एवं पोट्टिला मूषिकदारक कन्या के विवाह में शुल्क का वर्णन मिलता है। आवश्यकचूर्णी में एक व्यापारी का वर्णन आया है जो अपनी पत्नी से अप्रसन्न रहा करता था। उसने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया और बहुत-सा शुल्क देकर दसरा विवाह किया। इसी तरह एक चोर ने अपने चौर्य कर्म से अपरिमित धन संग्रह कर, यथेच्छ शुल्क दे किसी कन्या से विवाह किया। चम्पा के कमारनदी स्वर्णकार ने पांच-पांच सौ सुवर्ण मुद्रा देकर अनेक सुन्दरी कन्याओं से विवाह किया था। शुल्क के अतिरिक्त विवाह-प्रसंग में आगम प्रीतिदान का उल्लेख करता है । मेघकुमार द्वारा आठ राज-कन्याओं से विवाह करने के अवसर पर मेधकुमार के माता-पिता ने अपने पुत्र को विपुल धन प्रीतिदान में दिया । मेघकुमार ने इसे अपनी आठों पत्नियों में बांट दिया। आज की तरह आगम काल में दहेज की विभीषिका नहीं थी । यद्यपि कन्या को माता-पिता द्वारा दहेज देने का वर्णन कहींकहीं प्राप्त होता है। उपासकदशा में राजगृह के गृहपति महाशतक के रेवती आदि तेरह पत्नियों द्वारा दहेज में प्राप्त धन का विस्तार से वर्णन और पी.अद्विस्ट इण्डिया में वाराणसी के राजा द्वारा अपने जमाई को १,००० गांव, १,००० हाथी, बहुत-सा माल खजाना. एक लाख सिपाही और १०,००० घोड़े दहेज में देने का उल्लेख आया है। १. पिण्डिनियुक्ति टीका -पृ० ५०६ २. ब्राह्मो देवस्तथा आर्षः प्राजापत्यस्तथासुरः । गान्धर्वो राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः ।। मनु स्मृ० ३.२१, याज्ञवल्क्य स्मृति १.५८-६१ ३. ज्ञातधर्मकथा १, पृ० २३ ४. वही १४, पृ० १४८ ५. आवश्यकचूर्णी १, पृ० २३ ६. दशवकालिकचूर्णी-पृ० ३६६ ७. झातधर्मकथा- १६, पृ० १६८ ८. आवश्यकचूर्णी-पृ० ८६ ६. उपासक दशा ४, पृ० ६१, अल्तेकर-पृ० ८२-८४ १०. मेहता-प्री० बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० २८१ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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