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श्रमण-संस्कृति का युगपुरुष 'हिरण्यगर्भ'
महामहोपाध्याय डॉ० हरीन्द्रभूषण जैन
हिरण्यगर्भ कौन ?
हिरण्यगर्भ शब्द वैदिक तथा जैन-वाङ्मय में समानरूप से उपलब्ध होता है,। दोनों संस्कृतियों में हिरण्यगर्म की महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठा है। हिरण्यगर्भ की जो विशेषताएं वैदिक-साहित्य में वर्णित हैं उनका तुलनात्मक विश्लेषण करने से ऐसा प्रतीत होता है कि वैदिक हिरण्यगर्भ जैन वाङ्मय के हिरण्यगर्भ से पृथक् नहीं है। इस विश्लेषण से एक और बात की भी पुष्टि होती है कि इतिहास के अत्यन्त प्राचीनकाल में दोनों संस्कृतियों के पूर्वज बिना किसी भेदभाव के समानरूप से हिरण्यगर्भ के पूजक थे।
यह हिरण्यगर्भ कौन है ? क्या यह काल्पनिक व्यक्तित्व है अथवा वास्तविक पुरुष ? यह प्रश्न भारतीय इतिहास तथा संस्कृति के विचारकों के समक्ष अतिशय महत्त्वपूर्ण है। वैदिक दृष्टि
___ हिरण्यगर्भ में हिरण्य का अर्थ है सुवर्ण, तथा गर्भ का अर्थ है उत्पत्तिस्थान । ब्रह्मा की उत्पत्ति सुवर्णमय अण्डे से हुई थी । अत: वे हिरण्यगर्भ कहे जाते हैं-"हिरण्यं हेममयाण्डं गर्भः उत्पत्तिस्थानमस्य" । यह विष्णु का भी नाम है। सूक्ष्मशरीरसमष्ट्युपहितचैतन्य प्राणात्मा तथा सूत्रात्मा भी हिरण्यगर्भ कहे जाते हैं।'
___ ऋग्वेद के दशम मंडल में दश ऋचाओं का हिरण्यगर्भ नाम का एक सूक्त है जिसमें हिरण्यगर्भ की विशेषताओं का प्रतिपादन किया गया है
"हिरण्यगर्भः समवर्तताग्ने भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
स दाधार पृथिवीं चामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥"3 अर्थात् -सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व हिरण्यगर्भ उत्पन्न हुआ। पश्चात् अकेला वह समस्त प्राणियों का पति हुआ। उसी ने इस पृथ्वी तथा अन्तरिक्ष को धारण किया। हम उसी देवता की यज्ञादि के द्वारा पूजन करते हैं।
हिरण्यगर्भ सूक्त की अन्य ऋचाओं में कहा गया है कि हिरण्यगर्भ सबको आत्मा तथा बल का दान करते हैं, समस्त देवता तथा मानव उनके शासन को स्वीकार करते हैं, वह समस्त जगत का एक ही राजा है, वह द्विपद और चतुष्पद-दोनों पर शासन करता है, ये हिमवान् आदि पर्वत तथा नदियों के साथ समुद्र भी उसकी महिमा का प्रतिपादन करते हैं, समस्त प्रदिशाएं मानो उसकी भुजाएं हैं, उसने पृथ्वी तथा अन्तरिक्ष—दोनों को स्थिर किया, उसने स्वर्ग को भी स्थिर किया तथा अन्तरिक्ष में जल का निर्माण किया।
वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार आचार्य सायण ने हिरण्यगर्भ को प्रजापति का पुत्र तथा स्वयं प्रजापति बताया है। हिरण्यगर्भ की .. निरुक्ति करते हुए सायण कहते हैं-"हिरण्यगर्भः हिरण्मयस्याण्डस्य गर्भभूतः प्रजापतिहिरण्यगर्भः । तथा च तैत्तिरीयक-प्रजापति हिरण्यगर्भः प्रजायतेरनुरूपाय (ले० सं० ५.५.१-२) । यद्वा हिरण्मयोऽण्डो गर्भवद्यस्योदरे वर्तते सौऽसौ सूत्रात्मा हिरण्यगर्भ उच्यते । अग्रे प्रपञ्चोत्पत्तेः
१. “ब्रह्मा स्रष्टा परमेष्ठी-हिरण्यगर्भः शतानन्दः" हलायुधकोश, १६, पृ०७४३, प्रकाशन ब्यूरो, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश शकाब्द, १८७६; तथा आप्टेज
डिक्शनरी, 'हिरण्यगर्भ' शब्द २. ऋग्वेद, १०-१२१. ३. वही, १०/१२१-१.
जैन धर्म एवं आचार
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