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अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता । अतः कोथली निवासियों के आत्मकल्याण के निमित्त भी आप वहाँ पधारने की स्वीकृति प्रदान करें ।” अन्ततः आचार्यश्री ने कोथली निवासियों की भावना का सम्मान करते हुए कोथली में प्रवेश करना स्वीकार कर लिया ।
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का १७ जून, १९६७ को कोथली ग्राम में मंगल प्रवेश हुआ। उन्होंने सन् १९३५ में दिगम्बर परिवेश ग्रहण करने के लिये अपनी जन्मभूमि का परित्याग कर जैन सन्तों का सान्निध्य प्राप्त किया था। आज वही दिव्य पुरुष अपनी साधना के चरम उत्कर्ष पर पहुंचकर महान् धर्माचार्य के रूप में अपनी ही जन्मभूमि में धर्मप्रभावना के निमित्त आ रहे थे । आचार्यश्री के मंगल आगमन से कोथली अपने को धन्य अनुभव कर रही थी । उनके आगमन पर समुपस्थित स्त्री-पुरुषों के नयनों से आनन्दाश्रु बह उठे । आचार्यश्री का मंगलप्रवेश सभी कोथली निवासियों के लिये पारिवारिक उत्सव बन गया। उस दिन सभी ने अपनी प्रसन्नता प्रकट करने के लिये द्वार-द्वार पर धर्मपुरुष श्री देशभूषण जी की मंगल आरती उतार कर अपने को धन्य माना ।
कोयली ग्राम के सरल हृदय भावकों ने गांव में साधुओं के ठहरने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण आषार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज को संघ सहित श्री मलगौड़ा जिनगौड़ा पाटिल के खेतों में ठहरा दिया। आचार्यश्री के चरण रचनाधर्मी हैं । उनकी पावन उपस्थिति से जंगल में मंगल हो जाता है। कोयली एवं उसके निकटवर्ती अन्य ग्रामीण क्षेत्रों की आवश्यकता का अनुमान करते हुए आचार्यबी ने इस क्षेत्र के सर्वाङ्गण विकास की योजना को मन ही मन में निर्धारित कर लिया ।
उनके महान् व्यक्तित्व में एक आदर्श धर्मपुरुष एवं समाजशास्त्री का अद्भुत सम्मिश्रण है । कोथली के विकास की परियोजनाओं में उन्होंने सर्वाधिक महत्व ग्रामीणों की आवश्यकताओं पर केन्द्रित किया और अपने लोकमंगलकारी स्वरूप के कारण प्रथम चरण में मुनिनिवास, देवस्थान, गुरुकुल एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की योजना को प्रस्तुत किया। नाचाची की इस विशाल परियोजना को कोथली में समादर एवं विस्मय की दृष्टि से देखा गया। समादर का कारण योजना का वैज्ञानिक परिवेश था और विस्मय की पृष्ठभूमि में साधनों का अभाव — उपयुक्त भूमि एवं धन का अभाव - परिलक्षित होना था । गुरुकुल एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के माध्यम से आचार्यश्री ने कोथली एवं उसके निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों के अबोध बालकों के आध्यात्मिक एवं लौकिक विकास की ठोस पृष्ठभूमि निर्मित कर दी है और मुनिनिवास एवं देवस्थान द्वारा आपने इस क्षेत्र का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत् से जोड़ दिया है। इन सभी योजनाओं के लिये वहाँ के जैन और जैनेतर बन्धुओं ने भूमि के दान-पत्र स्वेच्छा से आश्रम के नाम लिख दिये थे ।
'देवस्थान व मुनि निवास
आचार्यरन श्री देशभूषण जी की प्रेरणा से निर्मित कोली के शिखरयुक्त जिनमन्दिर में तीन भाग है गर्भालय, कलश मंडप, प्रशस्त कल्याण मन्दिर । गर्भ मन्दिर में आद्यतीर्थंकर भगवान् आदिनाथ की ७ फुट ऊंवी श्वेत संगमरमर निर्मित भव्य, कायोत्सर्ग, मनोहारी प्रतिमा विराजमान है। कलश मण्डर की पीठिका पर भगवान् चन्द्रम, भगवान पार्श्वनाथ भगवान् महावीर आदि चौबीस तीर्थकरों की मूर्तियां पधराई गई हैं। मन्दिर की दीवारों पर स्थान-स्थान पर आचार्य कुन्दकुन्द कृत 'समयसार' की गाथाओं को उत्कीर्ण किया गया है । मन्दिर के दक्षिणी भाग में थोड़े अन्तराल पर जैन साधुओं की साधना के लिये १०×१० फुट आकार की दस गुफायें निर्मित की गई हैं। मन्दिर के ठीक सामने नयनाभिराम संगमरमर से निर्मित विशाल मानस्तम्भ है ।
शांतिगिरि की भव्य कल्पना
शांतिगिरि का धर्म-क्षेत्र के रूप में विकास करना आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की एक विशाल परिकल्पना है । इस क्षेत्र में आप एक कोलाहल विहीन आदर्श साधना-भूमि का विकास करना चाहते हैं। उनकी दृष्टि में, "संयमी मुनियों को संसार की पीड़ा को शान्त करने के लिए समुद्र के किनारे, वन में, पर्वत के शिखर पर नदी के किनारे, कमल वन में, प्राकार (कोट) में; शालवृक्षों के समूह में, नदियों के संगम स्थान पर, जल के मध्य द्वीप में, प्रशस्त वृक्ष के कोटर में, पुराने वन में, श्मशान में, पर्वतकी जीवरहित गुफा में, सिद्धकूट में, कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालयों में शून्य घर में, शून्य ग्राम में, पृथ्वी के ऊँचे-नीचे प्रदेश में कदली गृह में, नगर के उपवन की वेदिका में चैत्य वृक्ष के समीप उपद्रव रहित वर्जित स्थान में ध्यान करना चाहिये ।” तपोभूमि शांतिगिरि के निर्माण एवं विकास में आचार्यश्री का यह दृष्टिकोण सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। शांतिगिरि का वैभवयुक्त शैल आचार्यश्री के निर्मल मन की भक्ति का भावमय संगीत है। इस कलात्मक शैल के निर्माण में उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति एवं दीर्घ अनुभव को साकार किया है। सन् १९४९-५० में श्री नसेन त 'धर्मामृत' का हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत करते हुए आचार्यश्री के अवचेतन में तीर्थकर श्री शांतिनाथ
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कालजयी व्यक्तित्व
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